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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१४७ था । जब उन्हें यह भ्रम हो गया कि जीवन का यथार्थ, मानवीय संवेदनशीलता, मानव-मूल्यों एवं युगीन सत्य का चित्रण महत्वपूर्ण नहीं है तो सारी विशृंखलता यहीं से प्रारम्भ हो जाती है। _ 'तीसरी कसम', 'तीर्थोंदक', 'रस प्रिया', 'लाल पान की बेग़म, और 'तीन बिदियाँ' उनकी उपलब्धियाँ हैं। भीष्म साहनी (१९१५) प्रगतिशील कहानीकार हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में मूलतः मध्य वर्ग को लिया है और उसकी विभिन्न समस्याओं को यथार्थ ढंग से चित्रित करने का प्रयत्न किया है । इस मध्य वर्ग की कुंठा, पीड़ा, घुटन, बिखराव, रुढ़ियाँ एवं झूठी मान्यताएँ आदि उनकी विभिन्न कहानियों में बड़े सशक्त ढंग से अभिव्यक्ति पा सकी हैं । उनकी कहानी-काल का मूलाधार समष्टिगत चिन्तन पर ही आधारित है । अपनी कहानियों में उन्होंने पूरे भारतीय समाज को उसकी समस्त अच्छाई-बुराई के साथ ही ग्रहण किया है, निरे व्यक्ति को नहीं । जो व्यक्ति है भी वह सामाजिक इकाई है, अपने आप में कोई संस्था नहीं, इसलिए न तो वह किसी के लिए अजनबी है और न अपने अस्तित्व एवं निजत्व के लिए दिन-रात चिन्तित । लगभग सभी कहानियों में मध्य-वर्गीय जीवन-मूल्यों पर प्रहार किया गया है और पैने-तीखे व्यंग्य के माध्यम से उसकी कृत्रिमता एवं खोखलेपन को उभारा गया है । वे प्रेमचन्द और यशपाल दोनों से ही अत्यधिक प्रभावित हैं, इसलिए उनकी कहानियों में वर्णनात्मकता अधिक मिलती है । आज की कहानी में हुए परिवर्तनों, विशेषतया सूक्ष्म व्यंजनात्मकता, प्रतीक विधान एवं संकेतात्मकता आदि, की ओर उन्होंने विशेष ध्यान नहीं दिया हैं, इसीलिए उनकी कहानियाँ स्थूल हैं, सूक्ष्म नहीं । 'चीफ़ की दावत', 'पहला पाठ', 'बाप-बेटा', 'समाधि भाई रामसिंह', 'भटकती हुई राख' और 'सफ़र की रात' आदि सभी कहानियाँ इसी तथ्य को स्पष्ट करती है कि भीष्म साहनी वस्तुवादी अधिक हैं, कलावादी कम । उनकी कहानियों में शिल्प की यह उदासीनता प्रभावशीलता को कम नहीं
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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