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________________ अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व १४५ 'तीसरी कसम', 'रसप्रिया', 'तीर्थोंदक', 'लाल पान की बेगम' तथा 'ठेस' आदि कहानियों को पढ़कर उन गाँवों की मिट्टी की गंध तक का अनुभव होता था-उनमें इतनी यथार्थता है। अपने अंचल की लोकसंस्कृति, भाषा, आचार-व्यवहार, स्थानीय जीवन-पद्धति तथा मुहावरे आदि को रेण ने सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि से परखा है और उसे व्यापक सार्वजनीनता प्रदान करते हुए अपूर्व मानवीय संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने इन कहानियों में सर्वथा एक नई शैली का प्रयोग किया है-फ़ोटोग्रैफ़िक शैली का, जिसमें कहानीकार एक कैमरामैन की भाँति एक विशेष अंचल की भिन्न-भिन्न कोणों से तसवीरें उतारता हुआ चलता है। ये तसवीरें रंगीन हैं-वहाँ के हर रंग उनमें अंकित हो गए हैं, इसीलिए वे यथार्थ प्रतीत होते हैं, और बड़ी स्वाभाविकता एवं सहजता से पाठकों से प्रत्यक्ष' रूप से बोलते प्रतीत होते हैं। पर रेण के पास ध्वनि-यंत्र है, जिसके माध्यम से उन्होंने इस अंचल के गायों की चलने की आवाज़, पेड़-पत्तों के हिलने की ध्वनि, नाक सुड़कने और छींकने की आवाजें, हसुलियों और झांझनों के बजने, कंगनों की खनक तक मूर्त कर दी है। इस दृष्टि से रेणु बहुत ही सफल रहे हैं और उन्होंने प्रेमचन्द के उपरान्त पहली बार हिन्दी कहानियों में भारतीय ग्रामों को वाणी दी है।। लेकिन जब कुछ लोग प्रेमचन्द और रेण की तुलना करते हुए रेणु को प्रेमचन्द के समक्ष सिद्ध करने की सायास चेष्टा करने लगते हैं, तो 'मुग्ध' हुए बिना नहीं रहा जाता। प्रेमचन्द जैसी मानवीय संवेदनाशीलता, सामाजिक यथार्थ को उजागर करने की समर्थता और मानव-मूल्यों एवं सामाजिक दायित्व के निर्वाह की भावना को आत्मसात कर पूर्ण ईमानदारी से दिशोन्मुख होने की दिशा में रेण को अभी एक लम्बी यात्रा तय करनी है। जब कि उनकी यात्रा के सम्बन्ध में दस वर्ष भी व्यतीत नहीं हुए, उनकी कला ने गम्भीर प्रश्न चिन्ह उपस्थित कर दिए हैं । रेणु की इधर की कहानियों में वही पिष्टपेषण मिलता है और जिस
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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