________________
१४४ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
कहानियों में मानवीय संवेदनशीलता है, यथार्थ चित्रण है और सामाजिक दायित्व का निर्वाह है, जिसमें वे पूर्णतया सफल रहें हैं ।
पर मार्कण्डेय ने नगर - जीवन अथवा तथाकथित आधुनिक जीवन परिवेश को लेकर जो कहानियाँ लिखी हैं, वे उनकी असफल कहानियाँ है । वास्तव में यह क्षेत्र मार्कण्डेय का नहीं है और ये कहानियाँ बड़ी कृत्रिम एवं अस्वाभाविक प्रतीत होती हैं । उनमें यथार्थं के रंग भरने में भी वे समर्थ नहीं हो सके हैं। हो सकता हैं, नगर और ग्राम-जीवन, दोनों पर ही समान रूप से अपना अधिकार जमाने के लिए अथवा मात्र फ़ैशन के प्रवाह में आकर उन्होंने ये कहानियाँ लिखी हों, पर इनमें उनका प्रगतिशील दृष्टिकोण कोसों पीछे रह गया है । मार्कण्डेय में कहानी कहने का ढंग बहुत रोचक है और अपनी कहानियों के कथानक उन्होंने बड़ी कुशलता से संगुफित किए हैं । उनके पात्र यथार्थ जीवन से लिए गए हैं, पर अधिकांशतः वे जातीय हैं और किन्हींन किन्हीं वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं । उनका चरित्र - चित्ररण उन्हीं के यथार्थ परिवेश में किया गया है, इसलिए वे सजीव एवं आस्थावान लगते हैं और ग्रामीण अंचल अपनी पूरी यथार्थता एवं स्वाभाविकता के साथ उभरता हुआ दृष्टिगोचर होता है ।
'हंसा जाई अकेला', 'माही', 'आदर्शों का नायक' तथा 'घुन' उनकी अब तक की लिखी कहानियों की उपलब्धियाँ हैं ।
फणीश्वरनाथ रेणु (फरवरी, १९२१) भी आंचलिक कहानीकार रूप में ही ख्याति प्राप्त हैं । हिन्दी कथा साहित्य के क्षेत्र में रेणु का आविर्भाव एक घूमकेतु की भाँति 'मैला आँचल' के प्रकाशन के पश्चात् हुआ था और उस समय लगभग सभी अलोचकों को रेण अपूर्व संभावनाओं वाले लेखक लगे थे । उसके बाद ही उनका 'ठुमरी' कहानी संग्रह प्राया था, जिसकी कुछ कहानियाँ तो निश्चय ही एक नई ज़मीन तोड़ने वाली थीं और उनका उसी रूप में स्वागत भी हुआ ।