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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१३६ टाइम', 'पास-फेल' तथा 'भविष्यवक्ता' आदि इनी-गिनी कहानियाँ अपवाद हो सकती हैं, पर एक बहुत बड़ी संख्या उनकी कहानियों की ऐसी है जिनमें आत्मनिष्ठता और व्यक्ति-मूलक भावधारा को ही अभिव्यक्ति मिल सकी है। इस सम्बन्ध में स्वयं राजेन्द्र यादव ने एक स्थान पर लिखा है कि अजीब मजदूरी है, अपने से जुड़े इन सूत्रों को तोड़ देता हूँ, तो अपने लिए ही अपरिचित हो उठता हूँ, उन्हीं में बैठ रहता हूँ, तो अपने कुछ न होने का एहसास काटता है। हम कुछ न हुए, सन्दर्भ और प्रासंग ही सब कुछ हो गए। इन आसंगों और सन्दर्भो में घुटने और इन्हें तोड़कर अपने को ही न पहचान पाने की स्थिति से घबराकर नए सन्दर्भ और और प्रासंग बनाने, उन्हें पुरानों से जोड़कर परिचित करने की प्रक्रिया का सिलसिला शुरू होता है, दूर खड़े होकर अपने को पहचानने, न पहचानने कि दुविधा तंग करती है । मुझे लगता है, मेरा लिखना कुछ इसी खींच-तान का प्रतिफल रह गया है। अपने को अपने आपसे नोचकर 'नए', अनजाने, अनसोचे पात्रों, परिस्थितियों, समस्याओं, स्थितियों में फेंक-फैला देना, स्वयं अपने आप से अपरिचित हो उठना और फिर अपने जैसे उस 'परिचित' व्यक्ति की तलाश में भटकना और हमेशा यह महसूस करना कि भीड़ में वह मुझे छू-छूकर निकल जाता है। राजेन्द्र यादव के इस स्पष्ट कथन के पश्चात् कुछ भी विवाद की गुंजायश नहीं रह जाती । यह कथन अपनी कहानी स्वयं ही कहता है। वैसे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि राजेन्द्र यादव के पास प्रतिभा है, यथार्थ को पहचानने और जीवनपरिवेश को समझने की क्षमता है, पर कोई उन्हें यह जाने क्यों नहीं समझाता कि चौंका देना मात्र ही साहित्यिक उपलब्धि नहीं होती। स्वस्थ सामाजिक दृष्टि, यथार्थपरक जीवन, स्थितियों को उभारने की प्रयत्नशीलता भी बड़ी चीज़ होती है, जिस पर एक लेखक का
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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