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अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१३५ की आकुलता भी। पर ये कहानियाँ, 'जंगला' को छोड़कर, उस कहानीकार की छटपटाहट हैं, जो नया परिवेश और शिल्प पाने के लिए सतत प्रयत्नशील है और अन्ततोगत्वा 'एक और जिन्दगी' जैसी श्रेष्ठ कहानो तक पहुँच ही जाता है, जो कथ्य एवं कथन तथा दूसरी दृष्टियों से भी सर्वथा श्रेष्ठ कहानी है। 'मलवे का मालिक' में भारत-पाकिस्तान-विभाजन की कृत्रिमता और फलस्वरूप उत्पन्न नए मानव-मूल्यों का (सीमित अर्थों में ही सही) उन्होंने अपूर्व संवेदनशीलता से चित्रण किया है । 'मंदी' में सीज़न समाप्त होने के बाद पहाड़ों की आर्थिक विपन्नता एवं निम्न मध्यवर्गीय लोगों का यथार्थ चित्रण हुआ है, तो 'फटा आ जूता' में आज की नई पीढ़ी की विभ्रान्तता, घटन, कुण्ठा एवं आर्थिक विषमताओं को सूक्ष्म प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति मिली है। 'हक़ हलाल' में निम्न-वर्गीय परिवारों में नारी पर होने वाले सामाजिक अन्यायों का वर्णन है । ये सभी समस्यामूलक कहानियाँ हैं।
मोहन राकेश की कहानियों का दूसरा दौर वह है, जब लगता है कि उन्हें 'नए' की उपलब्धि हो गई और सूक्ष्म सांकेतिकता, व्यंजनात्मक .प्रतिभा, संश्लिष्ट चरित्रों को उभारने के लिए प्रतीकों की योजना से उन्होंने अपने शिल्प को नया मँजाव प्रदान किया और वह अभिनव रूप में प्रस्तुत किए जाने के योग्य बन गया। लेकिन इसका मूल्य उन्होंने आत्मपरकता एवं वैयक्तिक दृष्टिकोण अपनाकर चुकाया-यह बड़ी ट्रेजेडी है । 'मिस पाल', 'अपरिचित', 'सुहागिनें', 'एक और ज़िन्दगी', 'पाँचवे माले का फ़लैट', 'फ़ौलाद का आकाश', 'जख्म', 'सेफ़्टीपिन' आदि इसी दौर की कहानियाँ हैं जिनमें अाज की कहानी की सारी नूतन प्रवृत्तियाँ लक्षित होती हैं । 'मिस पाल' में एक भद्दी-मोटी स्त्री के मन की संवेदनशीलता और उसकी ट्रेजेडी को बहुत ही सशक्त ढंग से उभारा गया है । 'सुहागिनें' तथा 'एक और ज़िन्दगी' में आधुनिक जीवन में पतिपत्नी के सम्बन्धों की नवीन समस्याएँ सूक्ष्मता से चित्रित हुई हैं। मोहन राकेश का विश्वास है कि जिस प्रकार इकाई के रूप में आदमी का