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१३६ / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
अपना एक अलग अस्तित्व है, उसी अर्थ में लेखक और कलाकार का भी । पर दूसरी इकाइयों से स्वतन्त्र और निरपेक्ष वह कहीं पर भी नहीं है । वास्तव में उनके पात्रों का विकास इसी दृष्टिकोण के अनुरूप हुआ है । सामाजिक सन्दर्भों से लिए गए पात्र अपने विराट मानवीय चेतना से अलग हटकर धीरे-धीरे अन्तर्मुखी होते गए हैं और अकेलेपन तथा अजनबीपन की चादर ओढ़कर घुटन एवं कुंठाग्रस्त स्थितियों में छटपटाने के लिए बाध्य किए जाते रहे हैं ।
'मलवे का मालिक', 'मिस पाल', 'परमात्मा का कुत्ता' और 'एक और जिन्दगी' मोहन राकेश की अब तक लिखी गई कहानियों की उपलब्धियाँ हैं ।
कमलेश्वर (६ जनवरी, १९३२ ) ने मुख्यतया मध्यवर्गीय जीवन के यथार्थ को अपनी कहानियों में अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है । यद्यपि मोहन राकेश की भाँति उनकी कहानी - कला का विकास भी समष्टिगत चिंतन से व्यष्टि-चिन्तन की दिशा में हुआ है, पर कमलेश्वर के पास एक ऐसी यथार्थ जीवन-दृष्टि थी जिसे उन्होंने कभी नहीं छोड़ा । इसीलिए गत पाँच वर्षों की उनकी कहानियाँ उतनी घोर आत्मपरकता और वैयक्तिक चेतना को लिए हुए नहीं हैं जितनी कि मोहन राकेश की कहानियाँ | इसका कारण कदाचित् यही है कि कमलेश्वर प्रगतिशील कहानीकार हैं और प्रारम्भ में प्रगतिशील आन्दोलन से भी घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित रहे । अपने पहले कहानी-संग्रह 'राजा निरबंसिया' की भूमिका में कमलेश्वर ने लिखा है कि कथानक, शैली और शिल्प को चुनने की अभिरुचि में उनमें (नए कहानीकारों में ) चाहे कितना भी वैभिन्न हो ( और वह है ), किन्तु मानवीय मूल्यों के संरक्षण, जीवनी शक्ति के परिप्रेषण एवं सामाजिक नव-निर्माण की जितनी उत्कट प्यास इस पीढ़ी के कहानीकारों में है, वह पिछले दौर में नहीं थी । आज के हर कहानीकार में कुछ कहने के लिए एक अजब-सी अकुलाहट और बेबसी है, जो निश्चय ही इस संक्रमण काल की देन