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________________ १३४/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व विश्वास केवल उठी हुई वांहों के सहारे ही व्यक्त नहीं होता। हर रोज़ के जीवन में यह सब कुछ अनेकानेक सन्दर्भो में और कई-कई रंगों में सामने आता है। आज के जीवन ने उन रंगों में और भी विविधता ला दी है। बात उन विविध रंगों को पकड़ने और कहानी की सांकेतिक अन्विति में अभिव्यक्त करने की है। जीवन के नए सन्दर्भ कलात्मक अभिव्यक्ति के नए सन्दर्भ स्वतः ही प्रस्तुत कर देते हैं। उनके इस कथन को पूरी 'नई' कहानी के सन्दर्भ में न देखकर उन्हीं की कहानियों के सन्दर्भ में देखना उचित होगा। उनकी कहानियों में जीवन की विविधता के अनेकानेक सन्दर्भ और रंग प्राप्त होते हैं और मोहन राकेश ने उन्हें नूतन शिल्प-प्रयोगों के माध्यम से प्रस्तुत करने की सफल चेष्टा की है। उनकी कहानियों की चर्चा करते समय एक रोचक तथ्य यह निकलता है कि इस युग के अधिकांश कहानीकारों की भाँति समष्टिगत चिन्तन से वे व्यष्टि-चिन्तन की और दिशोन्मुख हुए हैं और इधर के चार-पाँच वर्षों में एक 'जंगला' कहानी को छोड़कर उनकी लगभग सभी कहानियाँ आत्मपरक दृष्टिकोण को लेकर लिखी गई हैं और उनमें पूर्ण अन्तर्मुखी भावनाओं को अभिव्यक्ति प्राप्त हुई है। मोहन राकेश जैसे प्रगतिशील सजग कहानीकार के लिए, जिनकी यात्रा 'मलवे का मालिक' जैसी सशक्त कहानी से प्रारम्भ हुई थी, यह कोई बहुत शुभ चिन्ह नहीं माना जा सकता कि वह यात्रा 'एक और ज़िन्दगी' की राहों से गुजरते हुए 'ज़ख्म' और 'सेफ्टीपिन' जैसी सँकरी गलियों से गुज़रे । प्रारम्भिक दौर की कहानियाँ समष्टिगत चिन्तन को लेकर लिखी गई हैं और उनमें प्रेमचन्द के सामाजिक यथार्थ की परम्परा का सफल निर्वाह मिलता है । 'मलवे का मालिक', 'मन्दी', 'फटा हुआ जूता', 'हक़ हलाल', 'परमात्मा का कुत्ता', 'बस स्टैण्ड की एक रात', 'मवाली', 'उलझते धागे', 'जंगला' आदि कहानियाँ इसी प्रकार की हैं जिनमें प्रगतिशील चेतना को स्थान मिला है। उनमें स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर जाने का आग्रह भी है और प्रतीक-विधान
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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