________________
आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / १३३
कहानियों में वे सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होते गए हैं । उन्होंने अधिकांश रूप में समष्टिगत आधुनिकता का चित्रण किया है और वह आधुनिकता मात्र फ़ैशन या नारे के लिए नहीं है । उन्होंने भारतीय जीवन-पद्धति के परिवर्तनशील सन्दर्भों एवं नूतन आयामों को भली-भांति समझा है और उसकी मूल प्रवृत्तियों से प्रसूत आधुनिकता के सूक्ष्म से सूक्ष्म रेशों का अत्यन्त कुशलता से अंकन किया है । सामयिक बोध, आधुनिक परिवेश एवं युगीन संचेतना के कारण भारती की कहानियों में सामाजिक दायित्व बोध एवं निर्वाह की एक व्यापक पृष्ठभूमि प्राप्त होती है, जो अपने दूसरे समकालीनों से उन्हें भिन्न करती हैं । उनमें न राजेन्द्र यादव की भाँति शिल्पगत चमत्कार है, न कमलेश्वर की भाँति दूसरों की सफल कहानियों से प्रभावित होने की प्रवृत्ति है और न मोहन राकेश की भाँति सामाजिक दायित्व एवं तथाकथित नई क्राइसिस को नारेबाज़ी के स्तर पर चित्रित करने का 'दुराग्रह' है । उनकी अपनी शैली है जिस पर उनके व्यक्तित्व की पूरी छाप अंकित है और यह उनकी प्रत्येक कहानी के साथ निरन्तर प्रौढ़ रूप में विकसित होती गई है ।
'मरीज़ नम्बर सात', 'धुनाँ', 'गुल की बन्नो', 'सावित्री नम्बर दो', 'यह मेरे लिए नहीं' आदि भारती की उपलब्धियाँ हैं ।
मोहन राकेश (जनवरी, १९२५) आज के प्रमुख कहानीकारों में से हैं । पिछले दशक अर्थात् १९५०-६० में वे 'नई' कहानी के प्रमुख वक्ताओं में रहे हैं । उनके अनुसार कहानी नए सन्दर्भों की खोज है, किन्तु इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि नए सन्दर्भों को खोजने का यह अर्थ नहीं कि अपने वस्तु क्षेत्र से बाहर जाया जाए । जीवन के नए सन्दर्भ अपने वातावरण से दूर कहीं नहीं मिलेंगे, उस वातावरण में ही ढूंढ़े जा सकेंगे । अभावग्रस्त जीवन की विडम्बना केवल खाली पेट और ठिठुरते हुए शरीर के माध्यम से ही व्यक्त नहीं होती | प्यार केवल सम्पन्नता और विपन्नता के अन्तर से ही नहीं हारता । अनाचार का सम्बन्ध रिश्वत और बलात्कार के साथ ही नहीं है, और