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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / १२७
धर्मवीर भारती की 'गुल की बन्नो', मोहन राकेश की 'मलवे का मालिक', अमरकान्त की 'खलनायक', मार्कण्डेय की 'हंसा जाई अकेला', मन्नू भण्डारी की 'आकाश के आईने में', कृष्णा सोबती की 'सिक्का बदल गया', फणीश्वरनाथ 'रेणु' की 'तीसरी कसम' तथा सुरेश सिनहा की 'मृत्यु और......' आदि कहानियाँ |
४ - जीवन-संघर्ष में डाल कर परिस्थितियों से जूझते हुए पात्रों का सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सन्दर्भ में विश्लेषण : धर्मवीर भारती की 'हरिनाकुश का बेटा', अमरकान्त की 'ज़िन्दगी और जोंक', मार्कण्डेय की 'माही', फणीश्वरनाथ 'रेणु' की 'टेवुल', तथा सुरेश सिनहा की 'नया जन्म' आदि कहानियाँ |
इसके अतिरिक्त उन कहानियों में, जिनमें इस काल में भी ठोस कथानक लिए गए हैं, पात्रों के चरित्र चित्रण की वही पुरानी पद्धतियाँ देखने को मिलती हैं-नाटकीय, विश्लेषणात्मक, अभिनयात्मक या वर्णनात्मक । धर्मवीर भारती, मोहन राकेश, अमरकान्त, मार्कण्डेय, फणीश्वरनाथ 'रेणु' की कई कहानियाँ इसी सन्दर्भ में देखी जा सकती हैं ।
इस काल की कहानियों की भाषा के सम्बन्ध में पीछे विचार किया जा चुका हैं, उसे यहाँ पुनः दुहराने से मात्र पिष्टपेषण ही होगा ।
अब कहानियों के वर्गीकरण पर बहुत संक्षेप में दो बातें | प्रवृत्तियों के आधार पर पीछे लेखक की प्रतिवद्धता और सामाजिक दायित्व के सन्दर्भ में विचार किया जा चुका है । यहाँ मुख्य रूप से दो वर्गों में कहानियाँ बाँटी जा सकती हैं :
१ - समष्टिगत चिंतन की कहानियाँ : इनमें वे कथाकार सम्मिलित हैं जो प्रगतिशील हैं और सामाजिक यथार्थवाद की भावना लेकर चल रहे हैं । इनमें धर्मवीर भारती, अमरकान्त,