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________________ १२६/आधुनिक कहानो का परिपार्श्व हुए लोग थे-उनमें न कहीं यथार्थता थी, न सप्राणता - वे मा. निर्जीव कठपुतलियाँ ही थे, जिन्हें कहानीकारों ने अपना मंतव्य पूर्ण करने के लिए स्वयं ही काल्पनिक ढंग से गढ़ लिया था। इस प्रतिक्रियावादी प्रवृत्ति का विरोध होना स्वाभाविक ही था और आज की कहानी ने पात्रों के चुनाव के लिए अपने आस-पास के परिचित यथार्थ परिवेश, जीवन और समाज को देखा और वहीं से पात्रों को लेकर अपनी कहानियों की रचना की। इन यथार्थ पात्रों को उनके अन्तम् एवं बाह्य के सामंजस्य से पूर्ण वनाने और अपने ही व्यक्तित्व के अनुरूप जीवन में गतिशील होने की सहज एवं स्वाभाविक प्रक्रिया आज की कहानी की एक प्रमुख विशेषता है । इन पात्रों के चरित्र-चित्रण के सम्बन्ध में भी अनेक नवीनताएँ लक्षित हुईं। इस काल की सभी प्रमुख प्रवृत्तियाँ-मनोविज्ञान, .फॉयडवाद, गांधीवाद, समाजवाद एव भारतीय दर्शन-इन पात्रों के माध्यम से व्यक्त हुई। चरित्र-चित्रण की नवीन प्रणालियाँ आज की कहानी में इस प्रकार प्रयुक्त होती हैं :१-आत्म-विश्लेषण : जैसे धर्मवीर भारती की 'सावित्री नम्बर दो', सुरेश सिनहा को 'सोलहवें साल की बधाई', सुधा अरोड़ा की ‘एक अविवाहित पृष्ठ', निर्मल वर्मा की 'लवर्स', राजेन्द्र यादव की 'नये-नये पाने वाले' आदि कहानियाँ । २-मानसिक द्वन्द्व एवं विश्लेषण : जैसे धर्मवीर भारती की 'यह मेरे लिए नहीं', मोहन राकेश की ‘एक और जिन्दगी', निर्मल वर्मा की 'माया दर्पण', नरेश मेहता की 'अनबीता व्यतीत', कमलेश्वर की 'तलाश', राजेन्द्र यादव की 'जहाँ लक्ष्मी कैद है', अमरकान्त की ‘एक असमर्थ हिलता हाथ', भीष्म साहनी की 'चीफ़ की दावत', उषा प्रियंवदा की 'वापसी', सुरेश सिनहा की पानी की मीनारें', ज्ञानरंजन की 'शेष होते हुए' तथा रवीन्द्र कालिया की ‘क ख ग' आदि कहानियाँ । ३-परिस्थितियों एवं कार्य-व्यापार के मध्य चरित्रों का अध्ययन :
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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