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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१२३ हो गई है कि जीवन-धारा से पूर्णतया असम्पृक्त, फलस्वरूप पलायनवादी प्रतीत होती है। इसके विपरीत स्वातंत्र्योत्तर काल में आज की कहानी ने व्यक्ति को उसके यथार्थ परिवेश में ही देखने की चेष्टा की, उसे जीवन धारा से काटकर पंगु या अस्वस्थ नहीं बनाया । इस प्रकार आज की कहानी में कथानक के ह्रास का उद्देश्य मुनिश्चत एवं स्पष्ट है। आज की कहानी ने व्यक्ति को उसके यथार्थ परिवेश में देखते हुए मानव-व्यक्तित्व की पूर्णता को व्यापक सामाजिक सन्दर्भो में पूर्ण यथार्थता से स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। मानवमन का अध्ययन या चरित्र का विश्लेषण सामाजिक परिवेश के परिप्रेक्ष्य में होने के कारण जो सत्य सामने आए हैं, वे जीवन-धारा से सम्बद्ध हैं, इसीलिए महत्वपूर्ण हैं । आज की कहानी में कथानक का ह्रास निम्नलिखित रूपों में देखने को मिलता है, ___१-मात्र व्यंजना के माध्यम से या सांकेतिकता से पूरी कहानी का संगुफन : ये कहानियाँ बहुत ही बौद्धिक हो गई हैं और उनमें प्रतीकयोजना या व्यंजना का आग्रह बहुत ही दुरूह हो गया है। कहानीकार का आग्रह सारी बातें संकेतों के माध्यम से ही स्पष्ट करने में होता है, जो निश्चय ही शिल्प का एक अत्यन्त प्रौढ़ रूप है । आज की कहानी में इस प्रकार की कहानियाँ अनगिनत संख्या में मिल जाएँगी । धर्मवीर भारती की 'सावित्री नम्बर दो', मोहन राकेश की 'जख्म', नरेश मेहता की 'निशाऽऽजी', निर्मल वर्मा की 'दहलीज़', राजेन्द्र यादव की 'नए-नए आने वाले', कमलेश्वर की 'माँस का दरिया', भीष्म साहनी की 'भटकती हुई राख', सुरेश सिनहा की 'नीली धंध के आर-पार', ज्ञानरंजन की 'सीमाएँ', रवीन्द्र कालिया को ‘क ख ग', उषा प्रियंवदा की 'मछलियाँ', मन्नू भण्डारी की 'अभिनेता' आदि कहानियाँ इसी तथ्य को पुष्ट करती हैं। २-कथानक के ह्रास का दूसरा रूप कथा-सूत्रों की विशृंखलता के रूप में लक्षित होती है । इसमें अपने अन्तिम उद्देश्य की प्राप्ति के
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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