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आज की कहानो और शिल्प
आज की कहानी के शिल्प के सम्बन्ध में पिछले अध्यायों में स्थानस्थान पर चर्चा की जा चुकी है । यहाँ समग्र रूप में शिल्प, आज की कहानी के वर्गीकरण और उसके आधार की चर्चा की जाएगी।
सबसे पहले हम कथानक के ह्रास की बात लें । श्राधुनिक काल में संसार की लगभग सभी भाषाओं की कहानियों में कथानक का ह्रास लक्षित होता है । यह ग्राज की कहानी में शिल्प की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विकास है। ठोस और सुसंगठित कथानक देने की प्रवृत्ति प्रेमचन्द-यशपाल आदि पिछले दौर के लेखकों ने अपनाई थी । पर स्वातंत्र्योत्तर काल में हम जीवन को जटिल से जटिलतर हुआ पाते हैं । विषमताओं से विषमताएं उत्पन्न हुई और प्रत्येक व्यक्ति का अपना स्वत्व, निजत्व या अपना अहं विकसित हुआ । इससे व्यक्ति अपने में ही सीमित हुआ और चरित्र संश्लिष्ट होते गए। इससे दुरूहताओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था । नए कथाकारों का ध्यान जिस व्यक्ति की जटिलताओं एवं दुरूहताओं का अध्ययन करने के प्रति गया, इसके लिए आवश्यक था कि वे व्यक्ति के रहस्यमय मन, संश्लिष्ट चरित्र और व्यक्तित्व के प्रत्येक रेशों और उनकी मूल पृष्ठभूमि का सूक्ष्म विश्लेषण करें और उन सत्यों का अन्वेषण करें जो स्थूलता के मार्ग पर चलने के अत्यधिक आग्रह के कारण पिछले दौर में उपेक्षणीय रहे । यहाँ यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि जैनेन्द्र 'अज्ञेय' की आत्मपरक विश्लेषण की धारा में भी कथानक के ह्रास की प्रवृत्ति मिलती है, पर वह इतनी आत्म-परक