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अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१२१ का विश्लेषण करते हुए भी तटस्थ रहता है। किन्तु इतना सब कुछ होते हुए भी उसकी यह भावभूमि अभी बहुत-कुछ अस्पष्ट है जिसका कारण मुख्यतया दुरूह असफल प्रयोग एवं प्रतीक-योजना है ।
आधुनिकता के समष्टिगत रूप को धर्मवीर भारती, अमरकान्त, भीष्म साहनी, कमलेश्वर और सुरेश सिनहा ने अपनी कहानियों में अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है, जो कलावादी न होकर प्रगतिशील कहानीकार हैं और जिनके लिए जीवन तथा समाज सर्वोपरि हैं। प्रआधुनिकता के व्यष्टिगत रूप को निर्मल वर्मा, नरेश मेहता, मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, मन्नू भण्डारी, उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, विनीता पल्लवी, ज्ञानरंजन, सुधा अरोड़ा तथा रवीन्द्र कालिया आदि कहानीकारों ने अभिव्यक्त करने का प्रयत्न किया है । इसमें से लगभग सभी कहानीकारों ने, विशेषतः नरेश मेहता ने, आधुनिकता के समष्टिगत रूप को भी अपनी कई कहानियों में चित्रित किया है, पर सब मिलाकर उनका आग्रह आधुनिकता के व्यष्टिगत रूप के प्रति ही अधिक रहा है। नरेश मेहता का दृष्टिकोण इन सब कहानीकारों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ है।
जहाँ एक ओर आज के कहानीकारों ने समाज, धर्म, प्रचलित नैतिक मानदण्डों और आचार-विचारों के प्रति विद्रोह किया, वहाँ शिल्प-सम्बन्धी प्रचलित मान्यताओं का भी उन्मूलन कर उनके स्थान पर अभिनव कला, नवीन शब्दों, प्रतीकों आदि का प्रयोग किया है। नवीन भावों के लिए नवीन भाषा भी चाहिए-इस दिशा में आज की कहानी ने प्रयास किया है, पर अभी उसमें स्पष्टता-अस्पष्टता का मिश्रण है। वैसे आज के कहानीकारों की भाषा सरल और छोटे-छोटे वाक्यों, सुबोध तथा प्रचलित शब्दों, यहाँ तक कि उर्दू-अँग्रेज़ी शब्दों, मुहावरों और कहावतों आदि से पूर्ण होती है। भाषा, भाव और अभिव्यक्ति की दिशा में आधुनिकता की यह महत्वपूर्ण देन है।