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१२० / आधुनिक कहानी का परिपार्श्व
이
आत्मपरक विश्लेषण की धारा ने व्यक्ति की स्थापना की,
और
वह
भी क्षय ग्रस्त व्यक्ति की, उसमें जीवन और समाज का कोई स्थान नहीं था । आज की कहानी ने पुनः समाज को प्रधानता दी । साथ ही व्यक्ति को भी चेतना का केन्द्र बनाया -- पर ऐसे व्यक्ति को नहीं, जो अस्वस्थ प्रवृत्तियों का घर है और जो बैठा-बैठा रोता रहता है । आज की कहानी वस्तुतः ऐसे व्यक्ति की स्थापना करना चाहती है जो समाज की कुरूपताओं, कलुपताओं, रूढ़ियों और खोखली परम्पराओं के प्रति विद्रोह करता है और स्वस्थ सामाजिक जीवन-दर्शन की खोज और उसके अनुरूप इतिहास - निर्माण की चेप्टा करता है । श्राज व्यक्ति का समाज के साथ एकीकरण की चेप्टा की जा रही है-उसमें स्वस्थ व्यक्ति का समाजीकरण किया जा रहा है - यह अभिनव याधुनिकता है । द्वितीय महायुद्ध के कारण उत्पन्न भीषण परिस्थितियों के बीच वह व्यक्ति को बचाना चाहता है, किन्तु ऐसे व्यक्ति को जिसमें समाज की सारी प्रगतिशील शक्तियाँ केन्द्रीभूत हो गई हों। वह सामाजिक यथार्थ के प्रति जागरूक रहना चाहता है । आज के कहानीकार की दृष्टि में सामाजिक यथार्थ का अलग-अलग रूप हो सकता है । उसकी दृष्टि भविष्य पर लगी हुई है और जीवन की संघर्षजन्य कटुताओं के बीच भी वह मानवोन्मुख है । यह प्राधुनिकता समष्टिगत चिन्तन पर आधारित है ।
आधुनिकता का एक व्यष्टि चिन्तन पर ग्राधारित रूप है, जिसे कलावादी अपना रहे हैं, जिनके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, पर कला है और आज की प्राधुनिकता को स्पष्ट अभिव्यक्ति देने की याकुलता है | अवचेतन, अर्द्ध-चेतन, दिवा स्वप्नों, अर्द्ध-चेतन प्रतीकों, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक संकेतों के प्रतीकात्मक प्रयोगों द्वारा ये कहानीकार अपनी व्यक्तिगत अनुभूतियाँ कलात्मक ढंग से अभिव्यक्त करते हैं और अपनी ओर से टीका-टिप्पणी करने के स्थान पर यथावत् चित्र उपस्थित कर देते हैं । वह अपने मन की विकृतियों और कुण्ठात्रों