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________________ आधुनिक कहानी का परिपार्श्व / ११६ शस्त्रों की कल्पना कर वह सोचता है- क्या युग-युग से अपने को सुसंस्कृत और सभ्य कहने वाले मनुष्य की यही ( ध्वंस) लीला है ? और फिर जब वह भविष्य को अपनी ओर मुँह बाए दौड़ता देखता है, तो उसका प्रारण मर्म काँप उठता है । इस भयंकर आशंका ने उसकी चेतना को कुंठित कर दिया है । लेकिन साथ ही वह स्वयं मोहग्रस्त है— उसे जीवन का स्पष्ट मार्ग दिखाई नहीं दे रहा है । यही कारण है कि आज की कहानी की दुरूहता और अस्पष्टता बढ़ती जा रही है । स्वस्थ दृष्टिकोरण का पूर्णतः अभाव है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता । अधकचरी बुद्धिवादिता तो रस में विष घोल रही हैं । तथाकथित बुद्धिवादी कहानीकारों में से अधिकांश तो 'अथ जल गगरी छलकत जाय' वाली उक्ति चरितार्थ करते हैं । नवीन सामाजिक चेतना और मध्यवर्गीय कटु अतृप्ति के साथ-साथ बौद्धिकता ने आज के कहानीकारों के संवेदनशील मन को झंकृत किया है और जैसा कि कहा गया है-'उनमें मतैक्य नहीं है - जीवन के विषय में समाज और धर्म और राजनीति के विषय में, कला-शिल्प और दायित्वों के विषय में उनका आपस में मतभेद है । यहाँ तक कि हमारे जगत् के ऐसे सर्वमान्य और स्वयंसिद्ध मौलिक सत्यों को भी वे समान रूप से स्वीकृत नहीं करते, जैसे लोकतन्त्र की आवश्यकता, उद्योगों का समाजीकरण, यांत्रिक युद्ध की उपयोगिता आदि । किन्तु 'अन्वेषी का दृष्टिकोण' उन्हें समानता के सूत्र में बाँध देता है । उन सबमें अपने चारों ओर के वातावरण के प्रति असन्तोष और नए मार्ग की खोज है । उन्होंने परम्परागत भाषा शैली और विषय के स्थान पर नई भाषा-शैली और नए विषयों को अपनी-अपनी कहानियों में उठाया है और आज की आधुनिकता को सूक्ष्मता के साथ अभिव्यक्त किया है । अपने पहले के युग में जैनेन्द्र कुमार - 'अज्ञेय' की आत्मपरक विश्लेषण की धारा के प्रति प्रतिक्रिया के कारण और नवीन, स्पष्ट मार्ग के अभाव के कारण उनके मन में अनेक उलझनें पैदा हो गई थीं । उस
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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