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आज की कहानो और आधुनिक परिवेश
वास्तव में आज की कहानी को समझने के लिए उसकी अाधुनिकता क्या है, यह समझना पहले आवश्यक है। वैसे तो 'आधुनिकता' सापेक्षिक शब्द है । सम्प्रति 'आधुनिक' या 'आधुनिकता' से क्या तात्पर्य है, इस सम्बन्ध में काफ़ी वाद-विवाद चल रहा है। कारण यह है कि 'अाधुनिकता' जीवन और साहित्य में पहली बार आई हो, ऐसी बात तो नहीं है । 'याधुनिकता' तो इतिहास में समय-समय पर आती रही है और आती रहेगी। आज का जीवन-क्रम तो इतनी तेजी से बदल रहा है कि जब तक हम एक प्रकार की 'याधुनिकता' को समझने की चेष्टा करते हैं, तब तक दूसरी 'याधुनिकता' आ जाती है। सम्भवत: आज जैसी स्थिति पहले कभी नहीं उत्पन्न हुई थी, इसलिए पहले इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। आज की 'माधुनिकता' ही कल की ऐतिहासिकता' बन जाती है। किन्तु जब कुछ लोग 'याधुनिकता' की व्याख्या करते समय उसे समसामयिकता या पुरातनता से भिन्न और इतिहास तथा ऐतिहासिकता से विच्छिन्न क्रम स्वीकारते हैं, तो उनके ग्राम्य भाव पर हँसी आए बिना नहीं रहती। इतिहास और ऐतिहासिकता की व्याख्या संसार के किसी भी विचारक ने किसी भी रूप में की हो, किसी ने उसे 'प्राधुनिक' से स्वतन्त्र और विच्छिन्न क्रम नहीं स्वीकारा। इसलिए प्रश्न यह उठता है कि तब क्यों 'आधुनिकता' की व्याख्या करने का प्रयास किया जा रहा है। सम्भवतः आधुनिक साहित्य के जटिल और दुल्ह भाव-बोध को स्पष्ट करने के लिए। इस बात की ओर पहले संकेत किया जा चुका है कि पिछले दो महायुद्धों और आणविक शक्ति
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