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अाधुनिक कहानी का परिपार्श्व/११५ वे कहानियाँ बहुत सूक्ष्म हो गई हैं और उनमें फिर वही अजनबीपन, अकेलापन, कुंठा, आस्थाहीनता तथा अविश्वास और विभ्रान्तता प्रा
२०-पीढ़ियों का संघर्ष : सामाजिक सन्दर्भो में : धर्मवीर भारती
की 'यह मेरे लिए नहीं', राजेन्द्र यादव की 'पास-फेल', मोहन राकेश की 'जंगला', कमलेश्वर की 'देवा की माँ', सुरेश सिनहा की 'सुबह होने तक', उषा प्रियंवदा की 'खुले हुए दरवाजे', विनीता पल्लवी की 'ऊपर-नीचे', सुधा अरोड़ा
को ‘एक अविवाहित पृष्ठ' आदि कहानियाँ। २१- पीढ़ियों का संघर्षः आत्मपरक दृष्टिकोण सेः निर्मल वर्मा की
'कुत्ते की मौत', ज्ञानरंजन की 'शेष होते हुए', सुरेश सिनहा
की 'तट से छुटे हुए' आदि कहानियाँ । २२-नारी जीवन के आधुनिक आयामों (प्रेम-विवाह-नौकरी आर्थिक
सामाजिक स्थितियाँ तथा मिसफ़िट होने की प्रवृत्ति ) को लेकर लिखी जाने वाली कहानियाँ : मोहन राकेश की 'ग्लासटैंक', कमलेश्वर की 'जो लिखा नहीं जाता', फणीश्वर नाथ 'रेणु' की 'टेबुल', नरेश मेहता की 'दूसरे की पत्नी के पत्र', राजेन्द्र यादव की 'जहाँ लक्ष्मी कैद है', अमरकान्त की 'एक असमर्थ हिलता हाथ', सुरेश सिनहा की 'मुर्दा क्षण', विनीता पल्लवी की 'काले गुलाब का प्रेत', उषा प्रियंवदा की 'झूठा दर्पण', कृष्णा सोबती की 'सिक्का बदल गया', मन्नू भण्डारी की 'कील और कसक' तथा सुधा अरोड़ा की
'एक सेंटीमेंटल डायरी की मौत' आदि कहानियाँ । २३-सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार की कहानियाँ : धर्मवीर भारती की
'गल की बन्नो', भीष्म साहनी की 'पहला पाठ' तथा 'समाधि भाई रामसिंह', फणीश्वरनाथ 'रेण' की 'तीर्थोदक' मन्नू भण्डारी की 'सयानी बुअा' तथा सुरेश सिनहा की 'मृत्यु