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११४/प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व १७-वेरोजगारी की कहानियाँ: अमरकान्त की 'इन्टरव्यू' तथा सुरेश
सिनहा की 'नया जन्म' । इन दोनों कहानियों में आजकल नौकरी देने के बहाने किए जाने वाले रोज़गार, इन्टरव्यू का नाटक, भाई-भतीजावाद आदि यथार्थ स्थितियों को लेकर नई पीढ़ी की कुंठा, निराशा एवं टूटन को सामाजिक
सन्दर्भो में यथार्थता से चित्रित किया गया है। १८-यांचलिक कहानियाँ:शैलेश मटियानी, फणीश्वरनाथ रेण, मार्कण्डेय
आदि की कई कहानियाँ, जिनमें किसी ग्राम विशेष की स्थानीय संस्कृति, लोक-व्यवहार की भाषा, मुहावरे तथा
जीवन आदि का यथार्थ चित्रण किया गया है । १६-भ्रष्टाचार की कहानियाँ: मोहन राकेश की 'काला रोज़गार',
श्रीमती विजय चौहान की 'चैनल' तथा मन्न भण्डारी की
'इन्कमटैक्स, कर और नींद' आदि कहानियाँ । पीढ़ियों का संघर्ष इस स्वातंत्र्योत्तर काल में एक प्रमुख समस्या रही है । यह एक संक्रान्ति का युग था, जिसमें पुराने प्रतिमान टूट रहे थे और नए मूल्य उभर रहे थे। पुरानी पीढ़ी अविश्वास और विचित्र . आशंका से इस नई पीढ़ी, नए उभरने वाले मूल्यों और आधुनिकता की नवीनतम प्रवृत्तियों को देख रही थी और नई पीढ़ी को सारे पुराने प्रतिमान रूढ़ और अव्यावहारिक प्रतीत हो रहे थे । ऐसी स्थिति में दोनों पीढ़ियों में संघर्ष होना स्वाभाविक ही था, जिसका अन्त पुरानी पीढ़ी की पराजय में ही होता था, क्योंकि सभी कहानीकार नई पीढ़ी के थे और वे अपनी पीढ़ी के विचारों एवं आदर्शों की सार्थकता तथा उपयोगिता किसी-न-किसी प्रकार सिद्ध करना ही चाहते थे । इस विषय को लेकर कई मार्मिक कहानियाँ लिखी गई हैं , जिनमें दोनों पीढ़ियों की सूक्ष्म-से-सूक्ष्म बातें बड़ी बारीकी से यथार्थ परिवेश में उभारी गई हैं । किन्तु महत्वपूर्ण वे कहानियाँ हैं जो सामाजिक सन्दर्भो में लिखी गई हैं । जब आत्मपरक ढंग से उनका विश्लेषण किया गया है, तो