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________________ ११२/आधुनिक कहानी का परिपार्श्व गई कि उसे अफ़सरों, मंत्रियों एवं दूसरे अधिकार प्राप्त लोगों से प्रेम करने, नारीत्व बेचने और स्वार्थ-पूर्ति करने का साधन बनाया गया। वासनात्मक प्रेम तो खैर लोकप्रिय बात है, जो स्वाभाविक भी है, और वह मानव जीवन के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है । उद्देश्य से अभिप्राय उस नई चेतना से है, जिसमें नारी और पुरुष दोनों प्रेम करने के पूर्व या एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने के पूर्व अपने जीवन के महती उद्देश्यों के सन्दर्भ में एक दूसरे को सोचने लगे । प्रेम में व्यक्तित्व के उन्मीलन का अभिप्राय यह है कि स्वातंत्र्योत्तर काल में जिस नई चेतना का विकास हुआ, उसमें नारी का एक नया सशक्त अहं विकसित होता दृष्टिगोचर होता है। उसका अपना एक स्वतन्त्र व्यक्तित्व बना और चूंकि वह आर्थिक रूप से स्वावलम्बिनी बन चुकी थी, इस लिए निजी अस्तित्व का भी प्रश्न उठा । पुरुष का अपना स्वतंत्र अस्तित्व तो पहले से खैर था ही। इसलिए प्रेम की नई स्थिति में दोनों ही अपने-अपने अस्तित्व को मिटाना नहीं चाहते थे, उसके प्रति प्रत्येक क्षण सचेत रहते थे । पर चंकि वे प्रेम भी करना चाहते थे, इसलिए वे एक विशेष बिन्दु तक अपने-अपने अस्तित्व को एक दूसरे में मिलाने का प्रयत्न करते थे, पर उस बिन्दु को दोनों ही पार नहीं करना चाहते थे, क्योंकि जिसने वह बिन्दु पार किया नहीं कि उसका अस्तित्व शून्य में विलीन हुआ, जो दोनों में से किसी को भी गवारा नहीं था । इसलिए यदि उस विशेप बिन्दु पर बात बननी हुई, तो बन गई, नहीं तो बिगड़ गई। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रेम की जो नई स्थितियाँ स्वातन्त्र्योत्तर काल में उभरीं, उनमें दोनों ही पक्ष अतिरिक्त रूप से 'कॉन्शस' रहने लगे और भावुकता का वहाँ कोई महत्व शेष न रह गया। यह प्रेम का नया यथार्थ था, जिसे कहानीकारों ने बहुत बड़ी संख्या में अपनी कहानियों में चित्रित किया। प्रेम प्रत्येक काल में ही साहित्यकारों का प्रिय विषय रहा है : ११-प्रेम और स्वार्थ : सामाजिक सन्दर्भो में : सुरेश सिनहा की
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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