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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१११ की 'अपरिचित शहर में' (दिल्ली) आदि कहानियाँ जिनमें क्रमशः प्राग, न्यूयॉर्क, पेरिस और दिल्ली आदि नगरों की स्थानीय संस्कृति, जीवन-परिवेश एवं प्राचारव्यवहार की आधुनिकता के बहाने यथार्थ जीवन एवं मानव
मूल्यों के विघटन की अभिव्यक्ति है। जीवन में अजनबीपन के बाद हमारे जीवन में जो दूसरा परिवर्तन आया है, वह है पति-पत्नी के नए सम्बन्ध-अर्थात् दोनों के व्यक्तिगत अहं, स्वतन्त्र सत्ता एवं अस्तित्व, तनाव, कटुता और अन्तिम परिणति तलाक़ । इसने भी हमारे कहानीकारों को बहुत प्रभावित किया है और इस विषय पर कुछ अच्छी कहानियाँ देखने में आई हैं : ६- पति-पत्नी के नए सम्बन्ध : आत्मपरक दृष्टिकोण से : मोहन
राकेश की ‘एक और जिन्दगी' तथा 'सुहागिनें' आदि
कहानियाँ। १०-पति-पत्नी के सम्बन्ध : सामाजिक सन्दर्भो में : धर्मवीर भारती
की 'सावित्री नम्बर दो', मन्न भण्डारी की 'आकाश के आईने में' तथा सुरेश सिनहा की 'नीली धुंध के आर-पार' 'कई कुहरे' तथा 'मुर्दा क्षरण', उषा प्रियंवदा' की 'कोई नहीं
आदि कहानियाँ। प्रेम के सम्बन्ध में इस स्वातंत्र्योत्तर काल में अनेक परिवर्तन देखने को मिले हैं । इस काल के पूर्व प्रेमचन्द या यशपाल की प्रेम-कहानियों में जो सामाजिकता या जैनेन्द्र कुमार और 'अज्ञेय' की प्रेम-कहानियों में जो भावुकता लक्षित होती थी, वह इस काल में नहीं दिखाई पड़ती और प्रेम-सम्बन्धों में भी स्वार्थ, वासना, उद्देश्य तथा अपनेअपने व्यक्तित्वों के परस्पर उन्मीलन की सफलता या असफलता लक्षित होती है । भावुकता से भरा हुआ प्रेम इस काल में बहुत ही कम कहानियों में देखने को मिला है। प्रेम में स्वार्थ से अभिप्राय उस सामाजिक परिवर्तन से है, जिसमें नारी इतनी 'आधुनिक' और 'प्रगतिशील' बन