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११०/प्राधुनिक कहानी का परिपार्श्व इस प्रकार की विभिन्न स्थितियों पर ढेर सारी कहानियाँ लिखी गई। उन्हें हम इस प्रकार की कोटियों में रख सकते हैं : १-पति-पत्नी का अजनबीपन-अात्मपरक दृष्टिकोण से : नरेश मेहता
की 'अनबीता व्यतीत'. राजेन्द्र यादव की : टूटना' आदि
कहानियाँ। २-पति-पत्नी का अजनबीपन-सामाजिक सन्दर्भो में : सुरेश सिनहा की
'टकराता हुआ आकाश', मन्न भण्डारी की 'तीसरा आदमी'
आदि कहानियाँ। ३-माँ-पुत्री का अजनबीपन-सामाजिक सन्दर्भो में : कमलेश्वर की
'तलाश' कहानी। ४-पारिवारिक अजनबीपन-सामाजिक सन्दर्भो में : सुरेश सिनहा की
'एक अपरिचित दायरा', उषा प्रियंवदा की 'वापसी', रवीन्द्र कालिया की 'इतवार का एक दिन' आदि कहानियाँ । कृष्णा
सोबती की 'बदली बरस गई'। ५-पारिवारिक अजनबीपन-आत्मपरक सन्दर्भो में : धर्मवीर भारती की
'यह मेरे लिए नहीं', सुरेश सिनहा की 'पानी की मीनारें', सुधा अरोड़ा की 'एक अविवाहित पृष्ठ' तथा ज्ञानरंजन
की 'शेष होते हुए' कहानी। ६-पिता-पुत्री का अजनबीपन-आत्मपरक सन्दर्भो में : निर्मल वर्मा की
'माया दर्पण' कहानी। ७-बहिन-बहिन का अजनबीपन-आत्मपरक सन्दर्भो में : निर्मल
वर्मा की 'दहलीज़' कहानी । सामाजिक सन्दर्भो में : सुरेश
सिनहा की 'विदा यात्रा का आखिरी सूरज' । ८-दूसरे नगर, समाज, लोगों के बीच में जाने और वहाँ अपने को मिस
फिट पाने तथा अजनबी होने की भावना : निर्मल वर्मा की 'पराए शहर में' (प्राग),उषा प्रियंवदा की मछलियाँ' (न्यूयार्क), रामकुमार की 'पेरिस की एक शाम' (पेरिस), सुरेश सिनहा