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________________ धुनिक कहानी का परिपार्श्व / १०६ असम्पृक्त नई कहानी हो ही नहीं सकती' - यह मानकर ही 'नई’ कहानी का जन्म हुआ था । 'नई' कहानी अर्थात् ग्राज की कहानी की सबसे बड़ी विशेषता उसका सामाजिक बोध है । पिछले कई अध्यायों में स्वातन्त्र्योत्तर काल की भारतीय जीवन-पद्धति में हुए परिवर्तनों की ओर संकेत दिया जा चुका है । जीवन-पद्धति की दृष्टि से यह एक नया काल था । जिस पश्चिम की जाति के सम्पर्क में हम एक लम्बे युग तक रहे और जिसने हमारी जीवन-पद्धति के बारीक-से-बारीक रेशे को प्रभावित किया था, उसका यह चरम काल था । हममें से एक ऐसा वर्ग, जो बड़े नगरों का वर्ग था, रातों-रात पाश्चात्य सभ्यता, संस्कृति, वेश-भूषा, आचार-व्यवहार एवं भाषा-साहित्य को अपना लेना चाहता था, क्योंकि उसके लिए स्वतन्त्रता का अर्थ वही था और वह किसी भी रूप में पिछड़े हुए निर्धन देश का नागरिक बना रहना नहीं चाहता था । आधुनिकता के लिए खींचतान कदाचित् इतने दिपम रूप में हमारे जीवन में इसी काल से प्रारम्भ हुई। इससे हमारे जीवन में भी निश्चित रूप से अकेलेपन या अजनवीपन की भावना बढ़ी और व्यक्ति समाज में रहते हुए भी अलग-अलग इकाई बनता गया और उसके अस्तित्व की चिन्ता उसे सताने लगी ! इसका कारण स्पष्ट था । आर्थिक विषमताएँ इतनी बढ़ गई थीं कि संयुक्त परिवार प्रथा के ध्वंसावशेष भी शेष न रह गए और रह भी नहीं सकते । बड़े नगरों की बात छोड़ दें, तो कस्बों एवं ग्रामों में भी यही अलगाव की प्रवृति बढ़ती गई और संस्था में से संस्था, फिर उसमें से दूसरी संस्था, इसी प्रकार संस्थाएँ बनती गईं और हर व्यक्ति अपने में ही सिमट कर एक संस्था बन गया । स्वातंत्र्योत्तर कालीन भारतीय जीवन-पद्धति का यह सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन था और इसने हमारे नई कहानीकारों का ध्येय बहुत आकृष्ट किया । यहाँ तक कि पति-पत्नी, माता-पिता और पुत्र-पुत्री, बहन तक एक दूसरे के लिए अजनबी और अपरिचित से हो गए और भाई-भाई और भाई
SR No.010026
Book TitleAadhunik Kahani ka Pariparshva
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size18 MB
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