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आधुनिक कहानी का परिपार्श्व/१०७ प्रगतिशीलता, आस्था एवं संकल्प का स्वर दब जाएगा और प्रतिक्रियावादी तत्वों का साहित्य में प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा। मुझे खेद है स्वातंत्र्योत्तर काल में अतिरिक्त आवेश एवं उत्साह से 'नवीन सत्यान्वेषण' करने वाले अनगिनत लेखकों ने अपनी-अपनी कहानियों में ऐसे-ऐसे 'सत्य' देने की होड़ लगाई, जिनसे सहयोगी कहानीकार और उनको उछालने वाले आलोचकों को विस्मय हुआ, पर पाठकों के प्रबुद्ध समाज में उनका क्या हश्र हुआ है, उसे यहाँ दुहराने की कोई आवश्यकता नहीं है । सत्यं शिवं सुन्दरम् की भावना आधुनिकता से कहीं अधिक शक्तिशाली है, हमारे नए कहानीकारों को यह स्मरण रखना चाहिए, क्योंकि भारत अन्ततोगत्वा भारत ही रहेगा, न्यूयॉर्क वाला अमरीका, प्राग वाला चेकोस्लोवाकिया या लन्दन वाला ब्रिटेन नहीं बन जाएगा।