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अर्थ :--- पथव्यास पिण्ड कहिए बिंबका व्यासकरि गुण्या हुवा वीथीनिका प्रमाण तीह करि हीन जो चार क्षेत्र ताकों एक घाटि वीथीनिका प्रमाणका भाग दिएं वीथीनिका अंतरालका प्रमाण हो है । बहुरि स्त्रीय विप्रमाण तामै जोडें दिवस गतिका प्रमाण है । तहां बिंबका व्यास योजनका अठतालीस इकसठियां भाग ४८ तीहकरि बीथी६१ निका प्रमाण एकसौ चौरासीकों गुणिएं तब अय्यासीसै बत्तीसका इकसठिवां भाग प्रमाण होइ ८८३२ याकौं समछेद विधानछरि चार क्षेत्रका ६१ प्रमाण विषै घटाइए तहां पांच से दसयोजन मेंस्यों समछेद किएं इकतीस हजार एकसौ दशका इकसठिवां भाग होय ३१११० यामें सूर्य बिंष
६१
४८
प्रमाण अधिक था सो जोडे इकतीस हजार एकसौ अट्ठावनका इक
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६१
इकसठवां भाग
सठिवां भाग भया
३११५८,
६१
८८३२ घटाइएं तब बाईस हजार तीनसै छब्बीसका इकस
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६१
२२३२६
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'या विषै पथव्यास पिण्ड अय्यासीसौ वपत्तीका
ठिव भाग होय
याक एक घाटि वीथीनिका प्रमाण एकसौ
६१
तियासी ताका भाग दीजिए वहाँ पूर्व भागहार इकसठ तार्को एकसौ तियासी करि गुणि भाग दीजिये तब बाईस हजार तीनसे छब्बीसकों ग्यारह हजार एकसौ तेरसठिका भाग दीजिए इतना
भया
२२३२६
तहां भाग दिएं दोय योजन पाए, सो दोय योजन प्रमाण
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