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- वेगाउद्विगुण तेसीदिसदं सहिद तिगुणगुणरूवे ॥ .: पण्णरमजिदे पव्वा सेसा तिहिमाणमयणस्स ॥ ४२.॥
व्येकावृत्तिगुणं त्र्यशीतिशतं सहितं त्रिगुणगुणरूपेण ।।
पंचदशभक्त पर्वाणि शेष तिथिमानं अयनस्य ।। ४२०॥ 'अर्थः-व्येका वृत्ति कहिए जेथवी विवक्षित आवृत्ति होइ तामें एक घटाएं जो प्रमाण रहै तिहकरि एक सौ तियासीको गुणिए, बहुरि जितनें गुणकारक एकसौं तियासीकौं गुणकरि ताकौं तिगुणाकरि तामें जोडिएं । वहुरि एक और जोडिए जो प्रमाग होइ ताको पंद्रहका भाग दोजिए जो लब्ध प्रमाण भावे तितने तो पर्व जाननें अवशेष रहे सो तिथि प्रमाण नाननां । दक्षिणायन वा उत्तरायणका ऐसही जाननां उदाहरण विवक्षित आवृत्ति प्रथम तामैं एक घटाएं विदीही तिहकरि एकसौ तियासीकों गुणों हिंदी करि गुणे बिंदीही होइ इस न्यायकरि विदीही भाई। ... बहुरि इहां गुणकार विंदी ताको तिगुणां किएभी बिंदीविष बिंदी जो. बिंदी ही भई । बहरि तामैं एक नो. एक भया योको पंद्रहका भाग लागै नहीं तातै पर्वका तो अभाव जाननां । अर अवशेष एक रह्या सौ तिथिका प्रमाण जानना ऐसे प्रथम मावृति दक्षिणायनका प्रारंभविर्षे प्रथम श्रावण मासवि, पर्वका तो अभाव आया पक्षकी पूर्णताभएं पूर्णमा वा अमावस्था जो होइ ताका नाम पर्व है । सो युगका आरंभ भएं पीछे जेते पर्व व्यतीत होइ सोई . इहां पर्वनिकी संख्या नाननी । सो प्रथम आवृत्तिविर्षे कोऊ भी पर्व-व्यतीत भया तातै पर्वका अभाव जाननां । अर तिथिका. प्रमाण एक जाननां ।
बहुरि दूसरा उदाहरण विवक्षित आवृत्ति दूसरी तामैं एक घटाएं एक रया तीहकरि एकसौ तियासीकौं गुणे एकसौ तियासी भए । बहुरि गुणकारको प्रमाण एक ताको तिगुणा किए तीनसौ मिलाय एफैसौ छियासी भये । बहुरि तामैं एक और जोडें एकसौ सित्यासी भए ।