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________________ ( १३५ ) बहुरि इहां सचाईस तैं अधिक होता तौ सत्तइसका भाग देते तातें इकईस ही रहे सो अश्विनी भरणी कृत्तिका आदि अनुक्रमतें गिनें अश्विनी तें लगाय जो ईकईसवां नक्षत्र होइ सोई प्रथम आवृत्तिविषै नक्षत्र होइ सो अश्विनीतें लगाय Feed नक्षत्र उत्तराषाढा है । परंतु इहां अभिजितका ग्रहण करना । काहे सो कहिए हैं । यद्यपि नक्षत्र अठ्ठाइस है । तथापि नहीं नक्षत्रनिकी गणनादिक करिए हैं तहां सत्ताईस नक्षत्र निहीका ग्रहण कीजिए हैं । अभिजित नक्षत्रका ग्रहण न कीजिए हैं जातें याका साघन सूक्ष्म है तातें इहां प्रथम आवृत्तिविषै स्थूलपर्ने साधन किए उत्तराषाढ भावै परंतु सूक्ष्मपर्ने साधन किए अभिजित नक्षत्र जाननां । आगेंमी अश्विनी आदिकर्ते वा कार्तिक आदिकतें नक्षत्र गणना विषै अभिजित नक्षत्रका ग्रहण करना नाहीं । • या प्रकार दक्षिणायनका प्रारंभविषै प्रथम श्रावण मासविषै नक्षत्र ल्यावनैका विधान ह्या । अब दूसरा उदाहरण कहिए हैं । विवक्षित दूसरी आवृत्ति तामैं एक घटाएं एक रक्षा तीह करि एकसौ इक्यासी कौं गुण एकसौ इक्यासीst हुवा इनमें इकईस मिलाएं दोयसै दोय भए इनको सताईसका भाग दिएं अवशेष तेरह रहे सो अश्विनी नक्षत्रत तेरन्हीं नक्षत्र हस्त सो उत्तरायणका प्रारंभविषै प्रथम माघ मासविषै हस्त नक्षत्र पाईए हैं। ऐसेही तीसरी पांचवी सातवी नवमीं आवृत्तिविषै दक्षिणायनका प्रारंभ श्रावण मासविषै होहै । तहां अर चौथी छठी आठवी दशव आवृत्तिवि उत्तरायणका प्रारंभ माघ मासविपैं हो हैं । तहां नक्षत्र साधन करनां ॥। ४१९ ॥ 1 → आगे दक्षिणायन उत्तरायणकै पर्व वा तिथि ल्यावनैविपैं सूत्र कहे हैं -
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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