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पक्षकी पंद्रह शुक्ल पक्षकी अंतविखें एक वधाएं तीन कार्तिक कृष्ण पक्षकी मिलाएं इकतीस तिथी हो हैं । ऐसे ही कार्तिकवि बारह कृष्णकी पंद्रह शुक्लकी च्यारि कृष्णकी मार्गशीर्प विष ग्यारह कृष्णकी पंद्रह शुक्लकी पांच कृष्णकी पौषविर्षे दश कृष्णकी पंद्रह शुक्लकी छह कृष्णकी तिथि मिले इकतीस तिथि होई। . - बहुरि उत्तरायणविर्षे माघवदी सात ते नव कृष्णकी इत्यादि रचना किए बहुरि दक्षिणायनविर्षे द्वितीय श्रावणमास वि श्रावण वदी त्रयोदशीत लगाय तीन कृष्णकी पंद्रह शुक्लकी तेरह कृष्णकी तिथि हो हैं। बहुरि भाद्रपदादिकवि रचना करानी । ऐसें रचना किएं मासविष अयनवि अधिक दिन आवै है। इस क्रमकरि पंचवर्षात्मक युगविय दोय अधिक मास हो हैं। ॥ ४१८ ॥ ____आरौं दक्षिणायन और उत्तरायणके प्रारंभ विर्षे नक्षत्र ल्यावका विधान कहैं हैं।
रूऊणाउद्विगुणं इगिसीदिसदं तु सहिद इगिवीसं ।। - तिघणहिदे अवसेसा अस्सिणि पहुदीणि रिक्खाणि १४१९॥
रूपोनावृत्तिगुणं एकाशीतिशतं तु सहितं एकविंशत्या ॥ • निधनहते अवशेषाणि आश्विनी प्रभृतीनि ऋक्षाणि ।४१९। ... मर्थः-रूपोनावृत्ति कहिए जेथवी आवृत्ति होइ तामें एक घटाएं जो प्रमाण होइ तिहकरि गुण्या हुवा एकसौ इक्यासी तामें इकईस नोडिए अर ताकौं तीनका धन जो सत्ताईस ताका भाग दिएं नेता अवशेष रहै तेथवा नक्षत्र अश्विनी आदितै नाननां । उदाहरण-जैसे विवक्षित आवृत्ति प्रथम तामैं एक घटाएं शुन्य अवशेष रहै तीहकरि एकसौ-इक्यासीको गुणिए सो शून्य करि गुण्या हुवा अंक शून्य ही होइ तातै गुण भी शून्य ही पाया। तीह बिदिविर्षे इकईस जो. इकईस ही भए ।