________________
(१३७)
-
-
बहुरि तामैं एक और जोडे एकसौ सित्यासी भए । इनको पंद्रहका भाग दिएं बारह पाएं सो बारह तौ पर्वको प्रमाण भया । युगका प्रारंभ वारह पर्व व्यतीत भएं पीछे दूसरी आवृत्ति हो है। भर अवशेष सात रहे सो सात तिथि जाननी । ऐसें दूसरी आवृत्ति उत्तरायणका प्रारंभ होते प्रथम माघमासवि होई तहां युगके आरंभ बारह तौ पर्व व्यतीत भए जानने भर सातै तिथि जाननी । याही प्रकार अन्य आवृत्तिनिविर्षे भी पर्व वा तिथीका प्रमाण ल्यावनां ॥ ४२०॥
आगै दिन वा रात्रिका प्रमाण निहिकालवि समान होइ ताका नाम विपुप हैं तिह विपुपविक् पर्व वा तिथि वा नक्षत्रानिकौं छह गाथानिकरि युगके दश अयनिवि कहे हैं:
छम्मासद्धगयाण जोइसयाण समाणदिणरत्ती ॥ तं इसुपं पढमं छसु पन्त्रसु तीदेखें तदिय रोहिणिए ।।४२०॥ पण्मासार्धगतानां ज्योतिप्काणां समानदिनरात्री । तत् विषुवं प्रथमं षट्सु पर्वसु अतीतेषु तृतीया रोहिप्याम् ॥
अर्थः-छह मासका अर्द्ध ज्योतिषीनिक भएं समान रात्रि हो है सोई विषुप है। भावार्थ:--एक अयन छह मासका हो है। तहां आधा अयन भएं दिन भर रात्रिका प्रमाण समान हो है।' सो जिस कालविर्षे दिन रात्रि होई ताका नाम विपुप है । सौ पंचे वर्ष प्रमाण युगवि दश विपुप हो हैं। पांच तौ दक्षिणायनका अर्द्धकालविर्षे पर पांच उत्तरायणका अर्द्धकालविर्षे हो है तहां पहला विषुप दक्षिणायनका अर्धकालविर्षे दूसरी उत्तरायणका अकोलंवि ऐसै क्रमत जाननें । तहां प्रथम विपुप मृगके आरंभः छह पर्व व्यतीत भएं तृतीय तिथिविर्षे रोहिणी भक्ति चंद्रमाकै होत होत सो हो सते हो है ॥ ४२१॥