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क्रम करना, हिरण्य सुवर्णके परिमाणको अतिक्रम करना, द्विपाद ( मनुष्यादि ) चतुष्पाद ( प्रशवादिके) के परिमाणको अतिक्रम करना, और धन धान्यके परिमाणको अतिक्रम करना, फिर घरके उपकर्ण के परिमाणको अतिक्रम करना वही पंचम अनुवतके अतिचार हैं अर्थात् जितना जिस वस्तुका परिमाण क्रिया हो उनको उल्लंघन करना वही अतिचार हैं; इस लिये अतिचारोंको चजेके पंचम अनुव्रत शुद्ध पालन करे ॥
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और षष्टम, सप्तम, अष्टम्, इन तीनों व्रतों को गुणवत कहते हैं क्योंकि यह तीन गुणात पांच ही अनुव्रतोंको गुणकारी हैं, और पांच ही अनुव्रत इनके द्वारा सुरक्षित होते हैं । अथ प्रथम गुण व्रत विषय ॥ दिग्वत ॥
सुयोग्य पाठक गण ! प्रथम गुणत्रतका नाम दिग्वत है जिसका अर्थ यह है कि दिशाओं का परिमाण करना, जैसेकि पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, उर्ध्व, अधो, इन दिशाओं में स्काया करके रामण करनेका परिमाण करना । और पांच आस्रव सेवनका परित्याग करना क्योंकि जितनी मर्यादा करेगा उतना ही आस्रव निरोध होगा। सो इस व्रत के भी पांच ही अतिचार हैं जैसेक्ति=