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द्रव्योंका स्वरूप कथन किया है उसको जो सम्यक् प्रकारसे जानता है वा मानता है वही जैन है ।।
प्रश्न-जिनेन्द्र देवने द्रव्य कितने प्रकारके वर्णन किये है ? उत्तर-पद् प्रकारके द्रव्य वर्णन किये हैं। प्रश्न-वे कौन कौनसे हैं ?
उत्तर-जीव पुद्गल धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि । सद् द्रव्य लक्षणम् । उत्पाद् व्यय ध्रौव्य युक्तं सत् इति द्रव्या:। किन्तु सद जो है यह द्रव्यका लक्षण है क्योंकि, सीदति रवीयान् गुणपर्यायान् व्यामातीति सत् ।। अपने गुणपर्यायको जो व्याप्त होवे सो सत् है अथवा उत्पादन्ययधौव्ययुक्तं सत् । यह जो पूर्व वचन है अर्थात उत्पत्ति विनाश और स्थिरता, इन तीनों की संयुक्त होवे सो सत् है अथवा अर्थनियाजारि सद जो अर्थ क्रिया करनेवाला है सो सत् है ॥ यथा
गुणाण मासओ दवं एगदवस्सिया गुणा लक्खणं पजवाणंतु उभयो अस्सियाभवे ॥ उ० अ० २८ गाथा ६॥
त्ति ॥ गुणानां रूपरसस्पर्शादीनां आश्रयः स्थान द्रव्यं यत्र गुणा उत्पचन्तेऽवतिष्ठते विलीयन्ते तव द्रव्यं इत्यनेन