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(१११) 'कपाट होते हैं तथावत् ब्रह्मचर्य आत्मज्ञानकी रक्षा करनेवाला है। अपितु जिस प्रकार शिरके छेदन हो जानेपर कटि भूजादि अवयव कार्यसाधक नहीं हो सक्ते इसी प्रकार ब्रह्मचर्यके भन्न होनेपर और व्रत भी भग्न हो जाते हैं। फिर ब्रह्मचर्य सर्व गुणोंको उत्पादन करता है। अन्य व्रतोंको इसी प्रकारसे सुशोभित करता है जैसे तारोंको चन्द्र आभूषणोंको मुकुट वस्त्रोंको कपासका वस्त्र पुष्पोंको अरविंद पुष्प वृक्षोको चं. दन सभाओंको स्वधर्मीसभा दानोंको अभयदान ज्ञानोंको केवलज्ञान मुनियोंको तीर्थकर वनोंको नंदनवन । जैसे यह वस्तुयें अन्य वस्तुयोंको सुशोभित करती है इसी प्रकार अन्य नियमोंको ब्रह्मचर्य भी सुशोभित करता है क्योंकि एक ब्रह्मचर्यके पूर्ण आसेवन करनेसे अन्य नियम भी सुखपूर्वक सेवन किए जासक्ते हैं। फिर जिसने इसको धारण किया वे ही ब्राह्मण है मुनि है ऋषि है साधु है भिक्षु है और इसीके द्वाग सर्व प्रकारकी मु. खोंकी माप्ति है।
यथा
प्राणभूतं चरित्रस्य परब्रह्मक कारणम् ॥ समाचरन् ब्रह्मचर्यं पूजितैरपि पूज्यते ॥ १॥