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(११२ ) देव राजे महाराजे शेठ सेनापति जिनको पूर्ण सामान मिळे हुए थे वे भी तृप्तिको प्राप्त न हुए और उन्होंने इसके वशमें होकर अनेक कष्टाको भोगन सहन किया । कतिपय जनोंने तो इसके वश होकर प्राण भी दे दिये । हा कैसा यह कर्म दुःखदायक है और शोकका स्थान है क्योंकि विषयीके चित्तमें सदा ही शोकका निवास रहता है, इसलिये इन कसे विमुक्त होनेका मार्ग एक ब्रह्मचर्य ही है। ब्रह्मचर्य से ही उत्तम तप नियम ज्ञान दर्शन चारित्र समस्त विनयादि पदार्थों प्राप्त होते हैं। और यमनियमकी वृद्धि करनेवाला है, साधुजनों करके आसेवित है, मुक्तिमार्गके पथको विशुद्ध करनेहारा है
और मोक्षके अक्षय सुखोंका दाता है, शरीरकी कांति सौम्यता प्रगट करनेवाला है, यतियों करके सुरक्षित है, महापुरिसों करके आचरित है, भव्य जनोंके अनुमत है, शान्तिके देनेवाला है, पंचमहाव्रतोंका मूल है, समित गुप्तियोंका रक्षक है, संयमरूपि घरके कपाट तुल्य है, मुक्तिके सोपान है, दुर्गतिके मार्गको निरोध करनेवाला है, लोगमें उत्तम व्रत है, जैसे तड़ागकी रक्षा करनेवाली वा तड़ागको सुशोभित करनेवाली सोपान होती है, इसी प्रकार संयमकी रक्षा करनेवाला ब्रह्मचर्य है तथा जैसे शकटके चक्रकी तूंवी होती है, महानगरकी रक्षाके लिये