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________________ ( १११ ) मीको वृद्ध अवस्था भी शीघ्र ही घेर लेती है; मृत्युका मूल है कामी जन शीघ्र ही मृत्युके मुखमें प्राप्त हो जाते हैं तथा कामियोंकी संतति भी (संतान) शीघ्र ही नाश हो जाती है, क्योंकि जिनके मातापिता ब्रह्मचर्य से पतित हुए गर्भाधान संस्कार में प्रवृत्त होते है वे अपने पुत्रोंके प्रायः जन्म संसार के साथ ही मृत्यु संस्कार भी कर देते हैं तथा यदि मृत्यु संस्कार न हुआ तो वे पुत्र शक्तिहीन दौर्भाग्य मुख कान्ति- हीन आलस्य करके युक्त दुष्ट कमोंमें विशेष करके मतृतमान होते हैं । यह सर्व मैथुनकर्मके ही महात्म्य है तथा इस कर्मके द्वारा विशेष रोगोंकी प्राप्ति होती है जैसेकि राजयक्ष्मादि रोग हैं वे अतीव विषयसे ही प्रादुरसुत होते हैं और कास श्वास ज्वर नेत्रपीडा कर्णपीडा हृदयशूल निर्वलता अजीर्णता इत्यादि रोगों द्वारा इस परम पवित्र शरीर विषयी लोग नाश कर बैठते हैं । कइयोंको तो इसकी कृपा से अंग छेदनादि कर्म भी करने पड़ते हैं । पुनः यह कर्म लोग निंदनीय वध बंधका मूल है परम अधर्म है चित्तको भ्रममें करनेवाला है दर्शन चारित्ररूप घरको ताला लगानेवाला है बैरके करनेवाला है अपमानके देनेवाला है दुर्नामके स्थापन करनेवाला है । अपितु इस कामरूपि जलसे आजपर्यन्त इन्द्र, देव, चक्रवर्ती वासु
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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