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जैन - शिलालेख - संग्रह
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होन्नूर कन्नड़
[ लगभग शक १०३०=११०८ ई० ( फ्लीट ) । ]
[ कोल्हापुर के पास कागलले दक्षिण-पश्चिम की ओर दो मील दूरपर होन्नूरमे जैनमन्दिरके भीतर एक प्रतिमाके अभिषेक-स्थल ( पाण्डुक शिला ) के सामने यह प्राचीन कन्नड़का लेख है । प्रतिमा खड्गासनस्थ सिरपर सर्पके सप्तफणाधारी छत्रसे मण्डित पार्श्वनाथस्वामीकी है । इसके दोनों कोनोमें एक-एक झुकता हुआ या बैठा हुआ आकार (मूर्ति) है | लेख इञ्च ऊंची तथा २ फुट ७ इञ्च चौड़ी जगहको घेरे हुए है । यह कोल्हापुरके शिलाहारोंमे से बल्लाळ और गण्डरादित्यके समयका है, अर्थात् लगभग शक १०३० (११०८ - ९ ई० ) के समीपवर्ती है । ]
लेख
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स्वस्ति श्रीमूलसंघद पो(पु) न्नागवृक्षमूलगणद रात्रिम विकन्तियर गुड्ड वम्मगावुण्डं माडिसिद वसदिगे श्रीमन्महामण्डलेश्वरं बल्लाळदेवनु गण्डरादित्यदेवन्म ( नुम् ) आहारदानके विट्ट कम्मविन्नूरक्कं अरुगयि मने
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[ स्वस्ति । श्रीमन्महामण्डलेश्वर वल्लालदेव और गण्डरादित्यदेवने श्रीमूल संघके ( मेद ) पुन्नागवृक्षमूलगणके रात्रिमतिकन्तिके गुड्ड ( शिष्य या अनुयायी ) वम्मगावुण्डके द्वारा निर्मापित वसदिके लिये, ( तपस्वियोको ) आहारदान के लाभार्थ २०० 'कम्म' एव छ. हाथ या ३ गज़का एकभवन दानमें दिया । ]
[IA, XII, p 102, n 6, t & tr ] निर्माण करता था उसको कुछ भूमि भेंट दी जाती थी, इसके तिवाय उस तालावसे फायदा उठानेवालोंसे तालाव के निर्माण करनेवालेको उत्पन्न ( फसल ) का १० वाँ हिस्सा या और कोई छोटा हिस्सा मिलता था । इसीका नाम 'दशवन्न' था ।