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हेवण्डेका लेख
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हेवण्डे-संस्कृत तथा कन्नड़-भन्न
[वर्ष ३५ चालुक्य-विक्रम=१११० ई०] [ हेब्बण्डेसें, तालावके दक्षिण नष्ट हुए बाँधके पासके पापाणपर]
श्रीमत्-परम ॥ ...."चालुक्याभरण श्रीमत्-त्रिभुवनमल्लदेवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि-प्रवर्द्धमानम्माचन्द्रार्क-तारं सलुत्तमिरे ॥ आतन मगं एरेयङ्ग (४ पक्तियाँ नष्ट हो गई है) विष्णुवर्द्धन-म ..............."एनिसि केतवडे (६ पक्तियाँ नष्ट हो गई है ) श्री शुभचन्द्र-देव.... .... .. .'' तुण्डरु बाढि-कोळाहळ · ........ "ख-समय-रक्षण-पक्षपाति ... ........ . ... एनिसिद कनकः "त्रैविद्यसिद्धान्तदेवर शिष्यरप्प मुनिचन्द्र-सिद्धान्त-देवर गुड्डि केतवे ... • ""विट्टि-देवतुं भुजवळ गंग-पेम्माडियु वम्म-गावुण्डनु नाम्-प्रभु चालक्यविक्रम-कालद ३५ नेय विकृत-संवत्सरद फाल्गुन-मासद शुद्धपञ्चमी वृहवारदन्दु"मुख्य-स्थानवागि'चन्द्रशेखर-वेगडे कट्टिसिद केरेय केळगे गळ्दे कम्म मूवोत्तु आ-केरेय तेङ्कण-कोडियल्लु वेदले मत्तरोन्दु मने आरु गाण बोन्दुः (हमेशाका अन्तिम श्लोक) श्रीमत कनकनन्दिविद्य-देवर गुड सेनवोव-योग-देवन वरह ॥ श्री
[जिनशासनकी प्रशंसा। जब (लपनी उपाधियों सहित) चालुक्य त्रिभुवनमल्लका विजयराज्य चारो ओर प्रवर्द्धमान था। (इस स्थानपर होसलोके विवरण है, जो कि बहुत घिस गये हैं ।) शुभचन्द्र-देव (से परम्परागत माये हुए) कनकनन्दि विद्य-देवके शिष्य, मुनिचन्द्र-सिद्धान्तदेवके गृहस्थ शिष्य केतव्वेकी प्रशंसा ।
विट्टिदेव, भुजवळ-गंग-पेाडि, बम्म-गावुण्ड (? तथा) नाळ्-प्रभुने, चालुक्य-विक्रम-कालके ३५ वें वर्षमे, जो कि विकृत वर्ष था, ६ मकान और