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हुम्मचके लेख
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देवी, (जिसका दूसरा नाम वीर-महादेवी था ) और चीर- देवसे ये पुत्र उत्पन्न हुए–तैल, गोग्गिग, राजा ओड्डग, और कर्म ।
इनमें से ज्येष्ठ पुत्र तैलप-देवने अपने भुज-वलसे शान्तरका मुकुट प्राप्त किया और भुजबल शान्तरके नामसे शान्तिसे राज्य किया । उसका नाम सर्वत्र प्रसिद्ध हो गया था । उसका छोटा भाई गोविन्दर देव था । इसका अपर नाम नन्नि शान्तर था । नन्नि शान्तरके नामसे ही इसने मुकुट धारण किया था । वह जिन-पादाराधक था, तथा चट्ट - देवि और राजकुमार ओइरस और बम्म देवके साथ शान्तिसे राज्य करता हुआ पोम्बुसें था ।
चल देवीने अरुमुळि देव, गावव्बरसेि, वीरल देवी और राजादित्य देवकी स्वर्गयात्रा स्मारकके उपलक्ष्य में उच्च तिलक नामसे प्रसिद्ध पञ्चवसत्रिके बनाने का काम अपने हाथमे लिया ।
सर्व शास्त्रो और नागमोमें पारङ्गत होनेसे सम्मानित, तपस्वी श्रीविजय देव चट्टल देवीके गुरु थे । उसका पिता राजा रकसगंग था । काञ्चीअधिपति (कावे ) उसका पति था । गोग्गि उसका पुत्र था । तालाब, कुआँ, चसदि, मन्दिर, नाली, पवित्र स्नानागार, श ( स ) त्र, कुक्ष इत्यादि प्रसिद्ध धर्म एवं पुण्यके कार्योंको चहल-देवीने सम्पन्न किया था ।
उत्तर - मधुराके अधिपति गोगिकी माँने बहुत उत्सुकतासे दुनिया में अग्रगण्य स्थान प्राप्त करनेवाले पञ्चकूट जिनमन्दिरको बनवाया । क्षितिज और काम दोनोसे arn करनेवाले ऐसे एक नये तालाब और मन्दिरका उसने निर्माण किया । इस तरह शान्तरकी मी प्रसिद्ध चट्टलदेवीने बहुत यश प्राप्त किया ।
श्रीविजय भट्टारक तियद्भुडिके निदुम्बरे तीर्थके रुळान्वयके नन्दिगणके अध्यक्ष थे । इनके गृहस्थ शिष्य चहल- देवी और नन्नि शान्तर थे किसी शुभदिन, उनके शिष्य श्रेयान्सपण्डितने पञ्च- बसदिके नींव का पत्थर
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डाला |
श्रेयांस आचायोंकी परम्पराका वर्णन - वर्द्धमान - स्वामीके तोत्थे में त्रिकालज्ञ गौतम गणधर हुए। उनके बाद कोण्डकुन्दाचार्य हुए, जो जमीन से चार इञ्च ऊंचे चलते थे । कुछ समय बाद भद्रबाहु स्वामी हुए, जिनके