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जैन शिलालेख संग्रह विराजमान भगवदर्हत्-परमेश्वर-परम-भट्टारक-मुख-कमळ-विनिर्गत-सदसदादिवस्तु-स्वरूप-निरूपण-प्रवीणरु सिद्धान्तामृत-वार्द्धि-वारद्धौत-विशुद्धि-बुद्धि-समृद्धरुभय-सिद्धान्त- रत्नाकररप्प श्रीमद्-दिवाकरनन्दि-सिद्धान्त-देवर गुड्ड खस्त्यनेक-गुण-गणाभिमण्डन नरवर-मुख-मण्डनं शान्तर राज्याभ्युदय-कारण कलि-युग-दोष-निवारण शान्तळि-देशकान्तारान्तर-जङ्गम-तीर्थ कलि-युग-पाथं पोम्बुर्च-कुलोद्भव-दिवाकर जिन-पाद-शेखरं आहाराभय-भैषज्य-शास्त्रदान-कानीन विशद-यशोनिधान सम्यक्त्व-बाराशियुमप्प श्रीमत्पट्टण-स्वामि-नोकय्य-सेट्टियर वृत्त ॥ जिन-तत्त्र व्याप्त-चित्त जिन-मत-तिळक जैन-कल्पावनीज ।
जिन-धर्माम्भोधि-चन्द्र जिन-समय-सरोजाकरोत्तस-हसम् । जिन-राज-स्तोत्र-माळाविळ-मुख-कमलोद्भासि सिद्धान्त रत्ना-।
कर-देव-श्री-पदाम्भोरुह-मधुपनेनल् पट्टण-खामि सन्दम् ।। (उत्तरमुख ) गुणिगळ् सिद्धान्त-रत्नाकररमळ-चरित्रमहा-योगि-वृन्दा-।
प्रणिगळ् श्री-शान्तिनाथ-क्रम-कमळ-युगाराधकर भारती-भू। पणबुद्धर ज्ञानिगळ् देशिग-गण-तिळकर जैन-सिद्धान्तचूडामणिगळ् श्री-पट्टण-स्वामिगे गुरुगळेनल् नोकनन्तार कतार्थर् ॥ परम-श्री-जैन-धर्मकतिशय-विभव माप विद्वज्जनका- ' दरदिन्द सन्तोस माडुव मुनि-जनकाहार-भैषज्यम वि- स्तरदिन्दं चिन्ते-गेवुन्नत-गुण-युत पट्टण-खामि नोक्कम् । वरमार् भव्यर्कळ् अन्ता पुरुप-तुनदि वीर-देवं कृतार्थम् ।। हरि-संघातदे कुट्ट-पेत्त वडव-ज्वाळाळियिं वेन्द भी। कर-पाठीन-तिमिङ्गिळाळियिनतिक्षोभक्के सन्टिन्दग-। स्त्यरिनप्-प्राशनकेय्दे वारदति-तीक्ष्ण-क्षार-वारि-प्रभ- ।