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हुम्मचका लेख
गुर-वाराशियोन्तु पोलिपुदो पेळ सम्यक्त्व - वाराशियम् | सिरिगावास मनेक रत्न - निचयोत्पत्त्याश्रय भीरु-र- 1 क्ष-रत चन्द्र-कळा-प्रवर्द्धन-मुद पीयूप - पिण्डास्पदम् | वर वेळा वळयामृत समतेयिं वारासि पोल्तु मनो- । हर-दानत्वदिनेदे पोलदे बल सम्यक्त्व - वाराशियम् ॥ पट्टण खामिय मग मुलं वरेदम् ।
( पूर्वमुख ) जड वाळकरु बुध-प्रकरमुं तत्त्वार्त्यमं कल्तघम् । किडे •सम्यक्त्वमनेग्डि सप्त-परम-स्ता (स्था) नाप्तियं निश्चयम् । पडेयल् माडिदरोप्पे••• तच्चार्थसूत्रक्के क- । asदिं वृत्तियनेल्लिग नेगळिपन सिद्धान्त - रत्नाकरर ॥ कन्तु दर्प- हर जिन तनगाप्तनाळ्दनवार्य्य-वि- । क्रान्तनोळ्गलि वीर - शान्तरनम्मणं गुणि तन्दे दिग्- । दन्ति-वर्त्तित-कीर्त्तिगळ् गुरुगळ् दिवाकरणन्दि-सि- । द्धान्त - देवरे के पट्टण - सामिनोक्कने सन्नुतम् ॥ स्नान पञ्चामृताख्यं पटु-पटह-रण झल्लरी शब्द- रम्यम् पूजा पुष्पाभिराम मळयज - पयसा लेपन दिव्य - धूपम् । नित्य कृत्वा जिनाना सकळ - जन- दया- जीवरक्षान-दानम् पोम्बुचत् प्रतिष्ठा तव भवति पर लोक-विद्या-विवेकः ॥ दारिद्र्य - लोभ-मद-भय-नाशकरं एकमेव तत्क्षणतः । पञ्चाक्षरमिट मन्त्र पट्टण-सामि ते जप - विबुधम् ॥ पुसि नुडिव चपल-वित्तियोऴ् ।
असदळमेसगुव पराङ्गना- सङ्गतिगा- । टितवल्लिदो पम् |
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