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________________ मथुराके लेख १८ मथुरा-प्राकृत भन्न । [हुविष्ककाल ? ] वर्ष ५ स्य व ५ गृ ४ दि ५ कोट्टिया .... . .. . त[] शाखात [7] वाचकस्य अर्य ... अनुवाद- "के ५ वें वर्षकी ग्रीष्म ऋतुके चौथे महीनेके ५ वे दिन, ..........""कोहिय (गण)... "शाखाके वाचक अर्य. (आर्य)... [FI, II, n° XIV, n° 12] मथुरा-प्राकृत । [कनिष्क स०५] अ. १... १ दे [व] पुत्रस्य का निष्कस्य स ५ हे १ दि १ एतस्य पूर्व [1] य कोट्टियातो गणातो ब्रह्मदासिका [ तो] २.[कुलातो उनागरितो शाखातो सेथि-ह-स्य - T--सेनस्य सहचरिखुडाये दे [व] व. १. पालस्य धि [त ] ." . २. वधमानस्य प्रति[मा] ॥ __अनुवाद'--देवपुत्र कनिष्कके ५ वें वर्षकी हेमन्त ऋतुके १ ले महीनेके १ले दिन, कोहियगण, ब्रह्मदासिका कुल और उच्चनागरी शाखाकी खुदा (क्षुद्रा) ने वर्धमानकी प्रतिमा समर्पित की। यह क्षुद्रा श्रेष्ठी • ... सेनकी पत्नी और देव .... पालकी पुत्री थी। El, I, XLIII, n° 1] १ सिद्धं की पूर्ति करो।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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