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जैन-शिलालेख संग्रह अनुवाद-अर्हन्तोको नमस्कार ! फगुयश (फल्गुयशस्) नर्तककी पत्नी शिवयशा (शिवयशस्) के द्वारा अर्हन्तोकी पूजाके लिये एक आयागपट बनवाया गया।
[EI, II, n° XIV, n° 5]
मथुरा-प्राकृत-भन्न ।
[विना कालनिर्देशका] नमो अरहतो महाविरस । माथुरक-लवाडस[सा]-भयाये-""ताये [आयागपटो] [1]
अनुवाद-महावीर अर्हत्को नमस्कार । मथुरानिवासी-लवाड (१) की पती-ताके [दानस्वरूप] यह आयागपट है।
[EI, II, n° XIV, n° 8]
मथुरा-प्राकृत।
[हुविष्फकाल ?] वर्ष ४ अ सिद्ध स ४ नि १ दि २० वारणातो गणातो अर्यहाट्ट
कियातो कुलतो वजणगरित [ो शा] - - ब पुश्यमित्रस्य शिशिनि सथिसहाये शिशिनि सिहमित्रस्य
सढचरि --- स दाति सहा ग्रहचेटेन ग्रहदासेन - -
अनुवाद-सिद्धि हो । चतुर्थ वर्षके ग्रीष्म ऋतुके १ ले महीनेके २० वे दिन, वारणगण, अर्य हाकिय (आर्य हाकीय) कुल, वजणगरी (वज्रनगरी) शाखाके --- पुष्यमित्रकी शिष्या, साथिसिहा (षष्टिसिंहा) की शिष्या, सिहमिन्न (सिहमित्र) की सढचरी (श्राद्धचरी)।
[EI, II, n° XIV, n° 117