________________
२१०
जैन - शिलालेख संग्रह
चैत्यालय होना चाहिये । शिलालेख नं० ११५ से भी यह निर्णीत होता है । उसमे यक्षिणी और नागनन्दि गुरुकी प्रतिमा है । यद्यपि यक्षिणियोंको बौद्ध और जैन दोनों ही मानते हैं, परन्तु नागनन्दि यह जैन नाम है । ]
लेखमें कूरगम्पाडिके 'पलिचन्द' की आमदनी दो तरह की बताई गई है - एक तो कर्पूरविले ( कपूर के खर्च ) की, दूसरी 'अन्नियाय वावदण्डविरै' की | कपूरखर्चकी बात तो ठीक समझमे आ जाती है, लेकिन उत्तरकी आमदनी 'अन्नियाय - वावदण्डविरै' का क्या अर्थ है, सो स्पष्ट नहीं है । इसके भी दो अर्थ किये जाते है: एक तो अन्याय वावदण्ड ( जुलाहोंका करवा ) इरै (कर)। इसका अर्थ होगा 'अनधिकृत करोरा कर (The tax on unauthorised looms ) । दूसरा अर्थ इसका यह हो सकता है अन्याय + आ + दण्ड + इरे । 'आव' का अर्थ होता है वाणोंका तूणीर । इसका तात्पर्य यह है कि विना अधिकारपत्र पाये जो धनुषवाणका प्रयोग करते थे उनपर जुर्माना ( दण्ड ) किया जाता था ।
[ El, IV, n° 14, B.]
१६८
श्रवणबेलगोला -- कन्नड
१६९ कुम्वरहल्लि -
[ विना काल-निर्देशका ]
[ जै. शि. ले. सं., भा. १.
}
कन्नड- भग्न
[ विना काल-निर्देशका, पर सम्मवतः लगभग १००० ई० ]
[ कुम्बरहलि ( कुइनहल्लि परगना ) मे, बसवगुडिकी दक्षिणी दीवालपर ] स्वस्ति श्रीमदजित सेन पण्डितदेवर शिष्यण नाक पुणि-समय
[ इसमे अजितसेन पण्डितके शिष्यका वर्णन है । ] { EC, III, Mysore tl, n° 31.]