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पञ्चपाण्डवमलैका लेख ८ णत्तियागविदु' कर्पूर-विलैयुमन्नियाय-[वा] वदण्ड[व्]-इरैयुमोळि
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त्तैको च् ]नि गङ्गैयि१० . [कुमरिय] इंडेचेरदार शे[य] द पा [व]कोळ्वारिदुवल्लदिप
ळ्ळिञ्चन्दत्तै केडुप्यार वल्लबारै] ११ • • [न][व] [0] [5]-द्ध [मत्] तै [रक्षिप्पान् पादधूळिय्
एन्-रलै मेलान [7] अरमिरवर्क अरमल्ल तुणि] यिल्लै ।। [यह शिलालेख तमिल गद्यकी ११ पक्तियोका है । लेखकी दूसरी पक्तिमें राजराज-केशरीवर्मन्के राज्यका ८ वा साल इसका काल बताया गया है। प्रस्तुत लेख महाराजा राजराज चोलके राज्यकालका है। यह ९८४८५ ई० मे गद्दीपर बैठे थे । इस लेखमें किसी विजयका वर्णन नहीं है। इस शिलालेखके नीचे एक पशु बनाया गया है, वह चीता होना चाहिये, क्योकि चोल राजामोका वह चिह्न रहा है।
लेखमें (पक्ति ३) लाटराज वीरचोलका एक शासन है। वह चोल राजा राजराजका कोई अधीनस्थ राजा होना चाहिये, क्योकि राज्यकाल उसीका (राजराजका) दिया हुभा है । लाटराज वीर-चोल पुगन्विप्पवर गण्डका पुत्र था । वीर-चोल और उनके पूर्वजोके नामके पहले लाटराज ऐसा विरुद लगा रहनेसे मालूम पड़ता है कि ये लोग पहले किसी समय लाट (गुजरात) से आये थे।। ___ यह अभिलेख इस बातका उल्लेख करता है कि अपनी रानीकी प्रार्थना पर वीर-चोलने तिरुप्पान्मलैके देवताके लिये (पं०४) कूरगन्पाडि गाँवसे कुछ आमदनी बाँध दी थी। ___ यद्यपि चैत्यालयका नाम सिर्फ 'तिरुप्पान्मलेका देवता' दिया गया है, परतु 'पल्लिचन्दम्' इस शब्दसे मालूम पडता है कि यह कोई जैन १ 'इन्द' पदो।
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