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वह दौड़ा हुआ मेरे पास आया और बोला-मैं दूसरे को मारने के लिये सर्प लाया था पर उसने मेरे ही बेटे को काट लिया। मैं जब तक वहाँ गया, तब तक वह लड़का मर चुका था। 10 दिन बाद वह व्यक्ति भी मर गया। यह णमोकर मंत्र की ही महिमा है कि साक्षात काल भी प्रेम का व्यवहार करके चला गया। सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हेतु सभी को सच्ची श्रद्धा-भक्ति से जिनेन्द्र भगवान् कि उपासना, आराधना, स्मरण, भक्ति-पूजा, ध्यान आदि करके आत्मा का कल्याण अवश्य करना चाहिये।
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये दूसरा कार्य है वीतरागी गुरुओं की उपासना करना। मोक्षमार्ग में गुरु ही हमारे सच्चे पथप्रदर्शक हैं। उस विद्यमान शक्ति को कैसे प्रगट करें, इस बात की शिक्षा गुरु ही देते हैं। गुरु आचरण के शिखर होते हैं, वही हमारे जीवन का उद्घाटन करते हैं। गुरु का अर्थ होता है 'गु' गूढतम 'र' रहस्यों 'उ' उद्घाटित करने वाला। जो हमारे जीवन में गूढ़तम रहस्यों को उद्घाटित करने वाले हैं, वही गुरु हैं। इसलिये कहा है
"गुरुर्विधाता गुरुदेव दाता। गुरुः स्वबन्धुर्गुणरत्न सिन्धुः ।।
गुरुर्विनेता गुरु देव तातो।
गुरुर्विमोक्षो हत कर्म पक्षः ।। अर्थात् गुरु ही विधाता हैं, गुरु ही दाता हैं, गुरु ही स्वकीय बन्धु हैं, गुरु ही गुणरूपी रत्नों के सागर हैं, गुरु ही शिक्षक हैं, गुरु ही पिता हैं और कर्मसमूह को नष्ट करने वाले गुरु ही मोक्ष हैं। ऐसे गुरु को नमस्कार हो; क्योंकि सद्गुरु हमें भटकती हुई भीड़, अज्ञान व अंध विश्वास से बाहर निकालते हैं।
गुरु महाराज की शरण में बैठने से, उनकी शान्त मुद्रा देखने से, उनसे ६ गर्मोपदेश सुनने से बुद्धि पर भारी असर पड़ता है। गुरु वास्तव में अज्ञानरूपी अंध कार को मेटने के लिये ज्ञानरूपी अंजन की सलाई चला देते हैं, जिससे अंतरंग ज्ञान की आँख खुल जाती है। जैसे पुस्तकों के होने पर भी स्कूल और कालेजों में मास्टर और प्रोफेसरों की जरूरत पड़ती है, उनके बिना पुस्तकों का मर्म समझ में नहीं आता, इसी तरह शास्त्रों के रहते हुये भी गुरु की आवश्यकता
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