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करता, परन्तु वासना के अभाव की चेष्टा करता है। यही सुख का सच्चा उपाय है। वासना की पूर्ति करने का उपाय संसारमार्ग है, जिसको वह मिथ्यात्व के कारण सुख मानता है। वासना का अभाव करने का उपाय आत्मिक सुख की प्राप्ति का उपाय है, जो वास्तविक सुख है।
मिथ्यात्व के कारण यह जीव इन्द्रियविषयों को सुख का कारण मानता है। संसारपरिभ्रमण का मूलकारण ये मिथ्यात्वादि उल्टे भाव ही हैं। इन उल्टे भावों को छोड़ने पर ही भवभ्रमण समाप्त होता है। सम्यग्दर्शन के बिना जीव का संसारपरिभ्रमण कभी नहीं मिटता। सम्यग्दर्शन का अर्थ आत्मा को अपनी अनन्तशक्ति की जो विस्मृति हो गयी है, उसकी स्मृति करना है। सुखस्वभावी आत्मा को जाने बिना सुख का अंश भी कहाँ से मिलेगा? यदि तुम्हें सुखी होना है तो सुख के भण्डार आत्मा को पहचानो और अपने स्वभाव में आकर उसमें सुख की खोज करो, तो तुम्हें उसमें भरा हुआ अपार खजाना मिलेगा। इसके बाहर कहीं भी सुख की एक बूंद भी नहीं है।
अफ्रीका में पानी की बहुत कमी रहती है। एक बार अफ्रीका से एक व्यक्ति भारत आया। वह एक होटल में रुक गया। वह बाथरूम में नहाने गया। ज्योंहि उसने नल खोला, तो वहाँ पानी-ही-पानी था। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा यह यंत्र तो बड़ा अच्छा है। नहाने के उपरान्त उसने साथ में ले जाने के लिये नल की टोंटी खोलनी चाही तो होटल के नौकर ने देख लिया। उसने नौकर को 100 रु. का नोट दिखाया तो नौकर चुप हो गया। वह समझ गया कि यह कोई बुद्धू व्यक्ति है। बाद में वह नौकर उसके कमरे में गया और बोला-आपको ऐसी टोंटियाँ और चाहिये? वह बोला कि क्या यहाँ ऐसी टोटियाँ और मिल सकती हैं? नौकर बोला- हाँ, आपको कितनी चाहिये? उसने 2500 रू. में 25 टोंटियाँ खरीद लीं। वह बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि अब हम अफ्रीका में पानी की समस्या को हल कर देंगे। वह टोंटियाँ लेकर अफ्रीका वापिस चला गया। वहाँ जाकर उसने टोंटी खोली तो उसमें से एक बूंद भी पानी नहीं आया। वह बड़ा दुःखी हुआ। उसे समझ में आ गया कि पानी टोंटी में नहीं, पानी तो टैंक में था।