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________________ इसी प्रकार हम भी इन इन्द्रिय-विषयों में सुख ढूँढ़ रहे हैं, पर इन इन्द्रियों में सुख नहीं है, सुख का टैंक तो आत्मा है। सुख-शान्ति तो हमारा स्वभाव है, पर हमने सुख को अपने आत्मस्वरूप में नहीं खोजा । जिन्होंने भी इसे आत्मा में खोजा, वे भगवान् बन गये। एक बार भी यदि हम सुख को अपने आत्मस्वरूप में खोजें तो अनन्तकाल के लिये सुखी हो सकते हैं। सम्यग्दर्शन होने पर इस जीव को आत्मा और आत्मिक सुख पर सच्ची श्रद्धा हो जाती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लिखा है "पर में सुख कहीं है नहीं, खुद ही सुख की खान । मृग भटके बिन ज्ञान ।। निज नाभि में गंध है, अनादिकाल से यह जीव इस संसार में विषय- कषायों से लिप्त होकर भटक रहा है। जीव भी अनादिकाल से है और जीव के विषय - कषाय भी अनादिकाल से हैं। विषय कषाय सहित जीव की इस अशुद्धि के नाश का उपाय भी अनादिकाल से ही चला आ रहा है। इस प्रकार जीव, विषय - कषाय और विषय - कषाय के नाश का उपाय ये तीनों ही अनादिकाल से हैं। विषय-कषायरूप से रहित होते हुये जीव की शुद्धि का उपाय ही धर्ममार्ग है और उसका शुद्ध हो जाना ही धर्म है। धर्म एक ही है, धर्म अनेक नहीं होते। वह धर्म है- रागादि का अभाव होकर आत्मा का शुद्ध होना । रागादि का यह अभाव सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता से होता है । द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म से भिन्न आत्मस्वभाव की श्रद्धा करना सम्यग्दर्शन है, वैसा ही ज्ञान करना सम्यग्ज्ञान है और आत्मस्वरूप में लीनता प्राप्त कर लेना सम्यक्चारित्र है-इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है । आत्मा अपने अपराध से संसारी बना है और अपने ही प्रयत्न से मुक्त हो जाता है। जब यह आत्मा मोही, रागी, द्वेषी होता है, तब स्वयं संसारी हो जाता है तथा जब राग, द्वेष, मोह को त्याग देता है, तब स्वयं मुक्त हो जाता है । अतः, जिन्हें संसारबन्धन से छूटना है, उन्हें उचित है कि सम्यग्दर्शन को प्राप्त करें और राग, द्वेष, मोह को छोड़ें। सम्यग्दर्शन प्राप्ति के उपाय हैं - सच्चे देव, शास्त्र, गुरु की श्रद्धा, सात तत्त्वों का श्रद्धान तथा स्व - पर भेदविज्ञान । 10 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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