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साधर्मियों का समागम, रोगरहित अवस्था, क्लेशरहित जीविका, इत्यादि पुण्यरूप सामग्री प्राप्त करके भी यदि आत्मा को मिथ्यात्व, कषाय, विषयों से नहीं छुड़ाया, तो अनन्तानन्त दुःखों से भरे संसारसमुद्र से मेरा निकलना अनन्तकाल में भी नहीं होगा। जो सामग्री आज मिली है, वह अनन्तकाल में भी मिलना अतिदुर्लभ है। अंतरंग-बहिरंग सकल सामग्री पाकर भी यदि आत्मा का प्रभाव प्रकट नहीं करूँगा, तो काल अचानक आकर समस्त संयोग नष्ट कर देगा। इसलिये अब मुझे राग-द्वेष दूर करके, जैसे मेरा शुद्ध वीतराग स्वरूप अनुभवगोचर हो, उस प्रकार ध्यान-स्वाध्याय में तत्पर होना चाहिये। मार्गप्रभावना के बारे में लिखा है
विज्जरहमारूढो मणोरहपहेसु भमदि जो चेदा।
सो जिणणाणपहावी, सम्मादिट्ठी मुणेदव्यो।। जिनेन्द्र भगवान् के बताए मार्ग की प्रभावना करने में वह मुनि श्रेष्ठ है, जो विद्या के रथ पर यानी आत्मज्ञान के रथ पर आरूढ़ होकर अपने इन्द्रिय व मन को वश में करके अपने जीवन को उज्ज्वल बनाने में लगा हुआ है। वास्तव में सम्यग्दर्शन से सम्पन्न मुनिराज ही जिनेन्द्र भगवान् के मार्ग की सच्ची प्रभावना करते हैं। मोक्षमार्ग की महिमा को प्रकटाते हैं। उन्हें देख करके लोग भी मोक्षमार्ग पर चलने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। सच्चा मार्ग वही है और सच्चे मार्ग की महिमा भी वही है, जिस पर चलने वाला स्वयं जीवन को निरन्तर उज्ज्वल और निर्मल बनाता है। साथ ही जिसे देखकर दूसरा भी अपने जीवन को पवित्र बनाने के लिए उत्साहित और लालायित हो जाता है। आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय' में लिखा है कि -
आत्मा प्रभावनीयो रत्नत्रय तेजसा सततमेव । दान-तपो-जिनपूजा विद्यातिशयैश्च जिनधर्मः ।।
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