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________________ हस्तावलम्बन देनेवाली है। हमारे लिये भव-भव में जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति ही शरण है। भगवान् की भक्ति से पापों का क्षय तथा पुण्य का संचय होता है। यह अरहन्त भक्ति संसारसमुद्र से तारनेवाली है, उसका निरन्तर चितवन करो। अरहन्त भक्ति नरकादि गति को हरनेवाली है। जो अरहन्त भक्ति भावना भाते हैं, वे देवों के सुख भोगकर, फिर मनुष्य का सुख भोगकर अविनाशी सुख के धारी अक्षय अविनाशी सिद्धों के जैसे सुख को प्राप्त करते हैं। जो अरहंत भगति मन आने, सो जन विषय कषाय न जाने। 0_7320
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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