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आचार्य भक्ति भावना
धर्मोपदेशक धर्मधुरन्धर, मेघावी आचार्य हैं। छत्तीस गुणों का पालन करते, शिष्यानुग्रह कार्य है।।
तीर्थंकर के प्रतिनिधि हैं, करते परउपकार हैं।
आचार्यों की भक्ति करके, पाते जीवन-सार हैं।। जो धर्मोपदेशक हैं, धर्म धुरन्धर हैं, मेघावी अर्थात् प्रज्ञा सम्पन्न हैं, छत्तीस गुणों का पालन करते हैं, शिष्यों पर अनुग्रह करते हैं, तीर्थंकर के प्रतिनिधि हैं, पर जीवों का उपकार करते हैं, वे आचार्य कहलाते हैं। आचार्यों के गुणों में अनुराग रखना "आचार्य भक्ति' है। जो आचार्यों की भक्ति करता है, वह रत्नत्रय को धारण कर मोक्ष को प्राप्त करता है।
वे धन्यभाग हैं, जिन्हें वीतरागी गुरुओं के गुणों में अनुराग होता है। धन्य पुरुषों के मस्तक के ऊपर गुरुओं की आज्ञा प्रवर्तती है। आचार्य तो अनेक गुणों की खान हैं। कैसे होते हैं आचार्य? जिनका अनशन आदि बारह प्रकार के उज्ज्वल तपों में निरन्तर उद्यम है, छह आवश्यक क्रियाओं में सावधान हैं, मन-वचन-काय की गुप्ति सहित हैं, ऐसे छत्तीस गुणों के धारी आचार्य होते हैं। सम्यग्दर्शनाचार को निर्दोष धारण करते हैं। सम्यग्ज्ञान की शुद्धता से युक्त हैं। तेरह प्रकार के चारित्र की शुद्धता के धारक हैं। तपश्चरण में उत्साह युक्त हैं, तथा अपनी शक्ति को नहीं
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