________________
उसने एक सकोरे में जहरीला सर्प रखकर उसे बन्द करके रूपलक्ष्मी को दिया और कहा कि इस सकोरे के अंदर बड़ी कीमती रत्नों की माला है उसे तू अपने बेटे को पहना देना । उसने घर जाकर अपने बेटे से कहा कि बेटा! तुम नौ बार णमोकार मंत्र पढ़कर इस सकोरे के अंदर से रत्नमाला निकालकर पहन लो। बेटे ने वैसा ही किया । उसने उस सकोरे के अन्दर से रत्नमाला को निकालकर पहन लिया और फिर उसी सकोरे में रखकर बन्द कर दिया ।
दूसरे दिन वही स्त्री जो कि सकोरा दे गयी थी, आती है । वह सोच रही थी कि उसका बेटा तो सर्प के काटने से मर चुका होगा। पर वहाँ जाकर देखा तो बात कुछ और ही थी । उसने पूछा- बहन ! पहनाई थी रत्नों की माला अपने बेटे को ? हाँ, बहिन ! पहनाई थी। वह तो बहुत सुन्दर रत्नों की माला है । कहाँ रखी है? उसी प्रकार सकोरे में । जब उस स्त्री ने उस सकोरे में हाथ डाला तो उस जहरीले सर्प ने उसको डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी । रूपलक्ष्मी पंचमी के पांच-पांच उपवास करती थी, जिससे उसकी व उसके पुत्र की रक्षा हुई ।
यह शरीर तो अशुचि है, दुःखों को उत्पन्न करने वाला है और विनाशीक भी है। इसको कितना ही खिलाओ, पिलाओ, सेवा करो, पर अन्त में यह नियम से धोखा ही देगा। इस शरीर का सदुपयोग तो तप करने में ही है। इससे जितना बन सके उतना इन बारह प्रकार के तपों को अत्यन्त हितकारी समझकर करते रहना चाहिए। पर हमारा तप किसी लौकिक इच्छा से नहीं होना चाहिये ।
दो राजपुत्र थे । एक दिन दोनों बैरागी हो गये और तप करने घर से निकल गये। छोटा भाई तो एक तापसी से दीक्षित हो गया और बड़े भाई ने दिगम्बरी मुनिदीक्षा ले ली। छोटे भाई को 12 वर्ष बाद स्वर्ण रस की सिद्धि हो गई, तो उसने अपने बड़े भाई के पास शिष्यों को भेजकर
U 701 S