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ने इन्हें वनवास दिया था। ये वही संसार है, वही संसार के लोग हैं, जिन्होंने श्रीराम को वनवास भेज दिया था और आप इस संसार में सुख ढूँढ़ रहे हो, इन मोही स्वार्थी जीवों में अपनी मान बड़ाई चाहते हो । जो आपके भगवान् का नहीं हुआ, वह आपका कैसे हो सकता है?
एक सेठ के पास अपार धन-संपत्ति थी । सेठ की एकमात्र इच्छा थी कि प्रचुर धनराशि का प्रदर्शन कुछ इस ढंग से किया जाये कि दुनियाँ सदा उसका यशोगान करती रहे। उसके जीवन के पचास वर्ष इसी उधेड़-बुन में बीत गये थे, किन्तु अभी तक उसे कोई उचित अवसर नहीं मिल पाया था ।
आखिर समय ने उसे मौका दे दिया। उसकी इकलौती बेटी की शादी का प्रसंग था । वह मन-ही-मन सोचने लगा कि धन- प्रदर्शन के माध्यम से यश पाने का यह उत्तम अवसर है। उसने दूसरे दिन अपने सभी मित्रों को बुलाकर कहा- मित्रो ! मैं अपनी लाड़ली बेटी की शादी ऐसे अनूठे ढंग से करना चाहता हूँ जैसे आज तक किसी ने कहीं न देखी हो, न सुनी हो । चाहे जितना खर्चा हो जाये, उसकी मुझे परवाह नहीं है । मैं यही चाहता हूँ कि सभी मेरी प्रशंसा मुक्तकंठ से करते रहें। शादी इतनी शानदार हो जिसे लोग युग-युगान्तर तक याद करते रहें ।
सेठ के उन मित्रों में से एक बुजुर्ग मित्र ने अपना अनुभव व्यक्त करते हुए कहा- मित्र! इस दुनियाँ में किसी को भी यश नहीं मिलता। तुम चाहे कितने भी अच्छे से अच्छा कार्य करो, किन्तु ये दुनियाँ किसी को यश नहीं देती। दुनियाँ की तो ये रीति है कि अच्छे-से-अच्छे कार्य में भी लोग त्रुटियाँ निकाल देते हैं।
यह सुनकर सेठ ने झल्लाकर कहा- • दुनियाँ त्रुटियाँ तो तब निकालेगी जब मैं किसी कार्य में कुछ कमी रखूँगा । जब शादी के आयोजन में कोई कमी रहेगी ही नहीं, तो दुनियाँ दोष भी कैसे निकालेगी? उस अनुभवी
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